रक्तामरीमुकुटमुक्ताफल- प्रकरपृक्ताङ्घ्रिपङ्कजयुगां
व्यक्तावदानसृत- सूक्तामृताकलन- सक्तामसीमसुषमाम्।
युक्तागमप्रथनशक्तात्मवाद- परिषिक्ताणिमादिलतिकां
भक्ताश्रयां श्रय विविक्तात्मना घनघृणाक्तामगेन्द्रतनयाम्।
आद्यामुदग्रगुण- हृद्याभवन्निगमपद्यावरूढ- सुलभां
गद्यावलीवलित- पद्यावभासभर- विद्याप्रदानकुशलाम्।
विद्याधरीविहित- पाद्यादिकां भृशमविद्यावसादनकृते
हृद्याशु धेहि निरवद्याकृतिं मनननेद्यां महेशमहिलाम्।
हेलालुलत्सुरभिदोलाधिक- क्रमणखेलावशीर्णघटना-
लोलालकग्रथितमाला- गलत्कुसुमजालाव- भासिततनुम्।
लीलाश्रयां श्रवणमूलावतंसित- रसालाभिरामकलिकां
कालावधीरण-करालाकृतिं, कलय शूलायुधप्रणयिनीम्।
खेदातुरःकिमिति भेदाकुले निगमवादान्तरे परिचिति-
क्षोदाय ताम्यसि वृथादाय भक्तिमयमोदामृतैकसरितम्।
पादावनीविवृतिवेदावली- स्तवननादामुदित्वरविप-
च्छादापहामचलमादायिनीं भज विषादात्ययाय जननीम्।
एकामपि त्रिगुण-सेकाश्रयात्पुनरनेकाभिधामुपगतां
पङ्कापनोदगत- तङ्काभिषङ्गमुनि- शङ्कानिरासकुशलाम्।
अङ्कापवर्जित- शशाङ्काभिरामरुचि- सङ्काशवक्त्रकमलां
मूकानपि प्रचुरवाकानहो विदधतीं कालिकां स्मर मनः।
वामां गते‌प्रकृतिरामां स्मिते चटुलदामाञ्चलां कुचतटे
श्यामां वयस्यमितभामां वपुष्युदितकामां मृगाङ्कमुकुटे।
मीमांसिकां दुरितसीमान्तिकां बहलभीमां भयापहरणे
नामाङ्कितां द्रुतमुमां मातरं‌ जप निकामांहसां निहतये।
सापायकांस्तिमिरकूपानिवाशु वसुधापान् भुजङ्गसुहृदो
हापास्य मूढ बहुजापावसक्तमुहुरापाद्य वन्द्यसरणिम्।
तापापहां द्विषदकूपारशोषणकरीं पालिनीं त्रिजगतां
पापाहितां भृशदुरापामयोगिभिरुमां पावनीं परिचर।
स्फारीभवत्कृतिसुधारीतिदां भविकपारीमुदर्करचना-
कारीश्वरीं कुमतिवारीमृषि- प्रकरभूरीडितां भगवतीम्।
चारीविलासपरिचारी भवद्गगनचारी हितार्पणचणां
मारीभिदे गिरिशनारीममूं प्रणम पारीन्द्रपृष्ठनिलयाम्।
ज्ञानेन जातेऽप्यपराधजाते विलोकयन्ती करुणार्द्र-दृष्ट्या।
अपूर्वकारुण्यकलां वहन्ती सा हन्तु मन्तून् जननी हसन्ती।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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वेदधारा की वजह से हमारी संस्कृति फल-फूल रही है 🌸 -हंसिका

Om namo Bhagwate Vasudevay Om -Alka Singh

वेदधारा का कार्य अत्यंत प्रशंसनीय है 🙏 -आकृति जैन

जय माधव आपकी वेबसाइट शानंदार है सभी लोगो को इससे लाभ होगा। जय श्री माधव -Gyan Prakash Awasthi

वेदधारा का कार्य सराहनीय है, धन्यवाद 🙏 -दिव्यांशी शर्मा

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