किं ते नामसहस्रेण विज्ञातेन तवाऽर्जुन।
तानि नामानि विज्ञाय नरः पापैः प्रमुच्यते।
प्रथमं तु हरिं विन्द्याद् द्वितीयं केशवं तथा।
तृतीयं पद्मनाभं च चतुर्थं वामनं स्मरेत्।
पञ्चमं वेदगर्भं तु षष्ठं च मधुसूदनम्।
सप्तमं वासुदेवं च वराहं चाऽष्टमं तथा।
नवमं पुण्डरीकाक्षं दशमं तु जनार्दनम्।
कृष्णमेकादशं विन्द्याद् द्वादशं श्रीधरं तथा।
एतानि द्वादश नामानि विष्णुप्रोक्ते विधीयते।
सायं प्रातः पठेन्नित्यं तस्य पुण्यफलं श‍ृणु।
चान्द्रायणसहस्राणि कन्यादानशतानि च।
अश्वमेधसहस्राणि फलं प्राप्नोत्यसंशयः।
अमायां पौर्णमास्यां च द्वादश्यां तु विशेषतः।
प्रातःकाले पठेन्नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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