कृत्तिका परमा देवी रोहिणी रुचिरानना।
श्रीमान् मृगशिरा भद्रा आर्द्रा च परमोज्ज्वला।
पुनर्वसुस्तथा पुष्य आश्लेषाऽथ महाबला।
नक्षत्रमातरो ह्येताः प्रभामालाविभूषिताः।
महादेवाऽर्चने शक्ता महादेवाऽनुभावितः।
पूर्वभागे स्थिता ह्येताः शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा।
मघा सर्वगुणोपेता पूर्वा चैव तु फाल्गुनी।
उत्तरा फाल्गुनी श्रेष्ठा हस्ता चित्रा तथोत्तमा।
स्वाती विशाखा वरदा दक्षिणस्थानसंस्थिताः।
अर्चयन्ति सदाकालं देवं त्रिभुवनेश्वरम्।
नक्षत्रमारो ह्येतास्तेजसापरिभूषिताः।
ममाऽपि शान्तिकं नित्यं कुर्वन्तु शिवचोदिताः।
अनुराधा तथा ज्येष्ठा मूलमृद्धिबलान्वितम्।
पूर्वाषाढा महावीर्या आषाढा चोत्तरा शुभा।
अभिजिन्नाम नक्षत्रं श्रवणः परमोज्ज्वलः।
एताः पश्चिमतो दीप्ता राजन्ते राजमूर्तयः।
ईशानं पूजयन्त्येताः सर्वकालं शुभाऽन्विताः।
मम शान्तिं प्रकुर्वन्तु विभूतिभिः समन्विताः।
धनिष्ठा शतभिषा च पूर्वाभाद्रपदा तथा।
उत्तराभाद्ररेवत्यावश्विनी च महर्धिका।
भरणी च महावीर्या नित्यमुत्तरतः स्थिताः।
शिवार्चनपरा नित्यं शिवध्यानैकमानसाः।
शान्तिं कुर्वन्तु मे नित्यं सर्वकालं शुभोदयाः।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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