निशुम्भशुम्भमर्दिनीं प्रचण्डमुण्डखण्डनीम्।
वने रणे प्रकाशिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।
त्रिशूलमुण्डधारिणीं धराविघातहारिणीम् ।
गृहे गृहे निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।
दरिद्रदुःखहारिणीं सतां विभूतिकारिणीम्।
वियोगशोकहारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।
लसत्सुलोललोचनां जने सदा वरप्रदाम्।
कपालशूलधारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।
करो मुदा गदाधरः शिवां शिवप्रदायिनीम्।
वरावराननां शुभां भजामि विन्ध्यवासिनीम्।
ऋषीन्द्रजामिनिप्रदां त्रिधास्यरूपधारिणीम्।
जले स्थले निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।
विशिष्टसृष्टिकारिणीं विशालरूपधारिणीम्।
महोदरे विशालिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।
पुरन्दरादिसेवितां सुरारिवंशखण्डिताम्।
विशुद्धबुद्धिकारिणीं भजामि विन्ध्यवासिनीम्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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आपकी वेबसाइट बहुत ही अद्भुत और जानकारीपूर्ण है। -आदित्य सिंह

आपका प्रयास सराहनीय है,आप सनातन संस्कृति को उन्नति के शिखर पर ले जा रहे हो हमारे जैसे अज्ञानी भी आप के माध्यम से इन दिव्य श्लोकों का अनुसरण कर अपने जीवन को सार्थक बनाने में लगे हैं🙏🙏🙏 -User_soza7d

वेदधारा से जब से में जुड़ा हूं मुझे अपने जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिला वेदधारा के विचारों के माध्यम से हिंदू समाज के सभी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। -नवेंदु चंद्र पनेरु

Om namo Bhagwate Vasudevay Om -Alka Singh

सनातन धर्म के भविष्य के लिए वेदधारा का योगदान अमूल्य है 🙏 -श्रेयांशु

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