प्राणाधिकप्रेष्ठभवज्जनानां त्वद्विप्रयोगानलतापितानाम्।
समस्तसन्तापनिवर्तकं यद्रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
भवद्वियोगोरगदंशभाजां प्रत्यङ्गमुद्यद्विषमूर्च्छितानाम्।
सञ्जीवनं सम्प्रति तावकानां रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
आकस्मिकत्वद्विरहान्धकार- सञ्छादिताशेषनिदर्शनानाम्।
प्रकाशकं त्वज्जनलोचनानां रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
स्वमन्दिरास्तीर्णविचित्रवर्णं सुस्पर्शमृद्वास्तरणे निषण्णम्।
पृथूपधानाश्रितपृष्ठभागं रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
सन्दर्शनार्थागतसर्वलोक- विलोचनासेचनकं मनोज्ञम्।
कृपावलोकहिततत्प्रसादं रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
यत्सर्वदा चर्वितनागवल्लीरसप्रियं तद्रसरक्तदन्तम्।
निजेषु तच्चर्वितशेषदं च रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
प्रतिक्षणं गोकुलसुन्दरीणामतृप्ति- मल्लोचनपानपात्रम्।
समस्तसौन्दर्यरसौघपूर्णं रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
क्वचित्क्षणं वैणिकदत्तकर्णं कदाचिदुद्गानकृतावधानम्।
सहासवाचः क्व च भाषमाणं रूपं निजं दर्शय गोकुलेश।
श्रीगोकुलेशाष्टकमिष्ट- दातृश्रद्धान्वितो यः पठितीति नित्यम्।
पश्यत्पवश्यं स तदीयरूपं निजैकवश्यं कुरुते च हृष्टः।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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