सहस्रादित्यसङ्काशं सहस्रवदनं परम्।
सहस्रदोःसहस्रारं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम्।
रणत्कङ्किणिजालेन राक्षसघ्नं महाद्भुतम्।
व्याप्तकेशं विरूपाक्षं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम्।
प्राकारसहितं मन्त्रं वदन्तं शत्रुनिग्रहम्।
भूषणैर्भूषितकरं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम्।
पुष्करस्थमनिर्देश्यं महामन्त्रेण संयुतम्।
शिवं प्रसन्नवदनं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम्।
हुङ्कारभैरवं भीमं प्रपन्नार्तिहरं प्रियम्।
सर्वपापप्रशमनं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम्।
अनन्तहारकेयूर- मुकुटादिविभूषितम्।
सर्वपापप्रशमनं प्रपद्येऽहं सुदर्शनम्।
एतैः षड्भिस्तुतो देवो भगवाञ्च्छ्रीसुदर्शनः।
रक्षां करोति सर्वत्र करोति विजयं सदा।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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