शरशरासन- पाशलसत्करा-
मरुणवर्णतनुं पररूपिणीम्।
विजयदां परमां मनुजाः सदा
भजत मीनसमानसुलोचनाम्।
अभिनवेन्दु- शिरस्कृतभूषणा-
मुदितभास्कर- तुल्यविचित्रिताम्।
जननिमुख्यतरां मनुजाः सदा
भजत मीनसमानसुलोचनाम्।
अगणितां पुरुषेषु परोत्तमां
प्रणतसज्जन- रक्षणतत्पराम्।
गुणवतीमगुणां मनुजाः सदा
भजत मीनसमानसुलोचनाम्।
विमलगान्धित- चारुसरोजगा-
मगतवाङ्मय- मानसगोचराम्।
अमितसूर्यरुचिं मनुजाः सदा
भजत मीनसमानसुलोचनाम्।
परमधामभवां च चतुष्करां
सुरमसुन्दर- शङ्करसंयुताम्।
अतुलितां वरदां मनुजाः सदा
भजत मीनसमानसुलोचनाम्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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प्रणाम गुरूजी 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 -प्रभास

😊😊😊 -Abhijeet Pawaskar

वेदधारा को हिंदू धर्म के भविष्य के प्रयासों में देखकर बहुत खुशी हुई -सुभाष यशपाल

Ram Ram -Aashish

वेदधारा की धर्मार्थ गतिविधियों में शामिल होने पर सम्मानित महसूस कर रहा हूं - समीर

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