अतुल्यवीर्यंमुग्रतेजसं सुरं
सुकान्तिमिन्द्रियप्रदं सुकान्तिदम्।
कृपारसैक- पूर्णमादिरूपिणं
दिवाकरं सदा भजे सुभास्वरम्।
इनं महीपतिं च नित्यसंस्तुतं
कलासुवर्णभूषणं रथस्थितम्।
अचिन्त्यमात्मरूपिणं ग्रहाश्रयं
दिवाकरं सदा भजे सुभास्वरम्।
उषोदयं वसुप्रदं सुवर्चसं
विदिक्प्रकाशकं कविं कृपाकरम्।
सुशान्तमूर्तिमूर्ध्वगं जगज्ज्वलं
दिवाकरं सदा भजे सुभास्वरम्।
ऋषिप्रपूजितं वरं वियच्चरं
परं प्रभुं सरोरुहस्य वल्लभम्।
समस्तभूमिपं च तारकापतिं
दिवाकरं सदा भजे सुभास्वरम्।
ग्रहाधिपं गुणान्वितं च निर्जरं
सुखप्रदं शुभाशयं भयापहम्।
हिरण्यगर्भमुत्तमं च भास्करं
दिवाकरं सदा भजे सुभास्वरम्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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वेदधारा के प्रयासों के लिए दिल से धन्यवाद 💖 -Siddharth Bodke

सनातन धर्म के भविष्य के प्रति आपकी प्रतिबद्धता अद्भुत है 👍👍 -प्रियांशु

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं का समर्थन करके आप जो प्रभाव डाल रहे हैं उसे देखकर खुशी हुई -समरजीत शिंदे

वेदाधरा से हमें नित्य एक नयी उर्जा मिलती है ,,हमारे तरफ से और हमारी परिवार की तरफ से कोटिश प्रणाम -Vinay singh

वेदधारा से जब से में जुड़ा हूं मुझे अपने जीवन में बहुत कुछ सीखने को मिला वेदधारा के विचारों के माध्यम से हिंदू समाज के सभी लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए। -नवेंदु चंद्र पनेरु

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