प्रसन्नमानसं मुदा जितेन्द्रियं
चतुष्करं गदाधरं कृतिप्रियम्।
विदं च केसरीसुतं दृढव्रतं
भजे सदाऽनिलात्मजं सुरार्चितम्।
अभीप्सितैक- रामनामकीर्तनं
स्वभक्तयूथ- चित्तपद्मभास्करम्।
समस्तरोगनाशकं मनोजवं
भजे सदाऽनिलात्मजं सुरार्चितम्।
महत्पराक्रमं वरिष्ठमक्षयं
कवित्वशक्ति- दानमेकमुत्तमम्।
महाशयं वरं च वायुवाहनं
भजे सदाऽनिलात्मजं सुरार्चितम्।
गुणाश्रयं परात्परं निरीश्वरं
कलामनीषिणं च वानरेश्वरम्।
ऋणत्रयापहं परं पुरातनं
भजे सदाऽनिलात्मजं सुरार्चितम्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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