खड्गं कपालं डमरुं त्रिशूलं हस्ताम्बुजे सन्दधतं त्रिणेत्रम्।
दिगम्बरं भस्मविभूषिताङ्गं नमाम्यहं भैरवमिन्दुचूडम्।
कवित्वदं सत्वरमेव मोदान्नतालये शम्भुमनोऽभिरामम्।
नमामि यानीकृतसारमेयं भवाब्धिपारं गमयन्तमाशु।
जरादिदुःखौघ- विभेददक्षं विरागिसंसेव्य- पदारविन्दम्।
नराधिपत्वप्रदमाशु नन्त्रे सुराधिपं भैरवमानतोऽस्मि।
शमादिसम्पत्-प्रदमानतेभ्यो रमाधवाद्यर्चित- पादपद्मम्।
समाधिनिष्ठै- स्तरसाधिगम्यं नमाम्यहं भैरवमादिनाथम्।
गिरामगम्यं मनसोऽपि दूरं चराचरस्य प्रभवादिहेतुम्।
कराक्षिपच्छून्यमथापि रम्यं परावरं भैरवमानतोऽस्मि।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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