भुवनकेलिकलारसिके शिवे
झटिति झञ्झणझङ्कृतनूपूरे।
ध्वनिमयं भवबीजमनश्वरं
जगदिदं तव शब्दमयं वपुः।
विविधचित्रविचित्रितमद्भुतं
सदसदात्मकमस्ति चिदात्मकम्।
भवति बोधमयं भजतां हृदि
शिव शिवेति शिवेति वचोऽनिशम्।
जननि मञ्जुलमङ्गलमन्दिरं
जगदिदं जगदम्ब तवेप्सितम्।
शिवशिवात्मकतत्त्वमिदं परं
ह्यहमहो नु नतोऽस्मि नतोऽस्म्यहम्।
स्तुतिमहो किल किं तव कुर्महे
सुरगुरोरपि वाक्पटुता कुतः।
इति विचार्य परे परमेश्वरि
ह्यहमहो नु नतोऽस्मि नतोऽस्म्यहम्।
चिति चमत्कृतिचिन्तनमस्तु मे
निजपरं भवभेदनिकृन्तनम्।
प्रतिपलं शिवशक्तिमयं शिवे
ह्यहमहो नु नतोऽस्मि नतोऽस्म्यहम्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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