प्रातर्नमामि जगतां जनन्याश्चरणाम्बुजम्।
श्रीमत्त्रिपुरसुन्दर्याः प्रणताया हरादिभिः।
प्रातस्त्रिपुरसुन्दर्या नमामि पदपङ्कजम्।
हरिर्हरो विरिञ्चिश्च सृष्ट्यादीन् कुरुते यया।
प्रातस्त्रिपुरसुन्दर्या नमामि चरणाम्बुजम्।
यत्पादमम्बु शिरस्येवं भाति गङ्गा महेशितुः।
प्रातः पाशाङ्कुश- शराञ्चापहस्तां नमाम्यहम्।
उदयादित्यसङ्काशां श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरीम्।
प्रातर्नमामि पादाब्जं ययेदं धार्यते जगत्।
तस्यास्त्रिपुरसुन्दर्या यत्प्रसादान्निवर्तते।
यः श्लोकपञ्चकमिदं प्रातर्नित्यं पठेन्नरः ।
तस्मै ददात्यात्मपदं श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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