यो लोकरक्षार्थमिहावतीर्य वैकुण्ठलोकात् सुरवर्यवर्यः।
शेषाचले तिष्ठति योऽनवद्ये तं वेङ्कटेशं शरणं प्रपद्ये।
पद्मावतीमानसराजहंसः कृपाकटाक्षानुगृहीतहंसः।
हंसात्मनादिष्ट- निजस्वभावस्तं वेङ्कटेशं शरणं प्रपद्ये।
महाविभूतिः स्वयमेव यस्य पदारविन्दं भजते चिरस्य।
तथापि योऽर्थं भुवि सञ्चिनोति तं वेङ्कटेशं शरणं प्रपद्ये।
य आश्विने मासि महोत्सवार्थं शेषाद्रिमारुह्य मुदातितुङ्गम्।
यत्पादमीक्षन्ति तरन्ति ते वै तं वेङ्कटेशं शरणं प्रपद्ये।
प्रसीद लक्ष्मीरमण प्रसीद प्रसीद शेषाद्रिशय प्रसीद।
दारिद्र्यदुःखादिभयं हरस्व तं वेङ्कटेशं शरणं प्रपद्ये।
यदि प्रमादेन कृतोऽपराधः श्रीवेङ्कटेशाश्रितलोकबाधः।
स मामव त्वं प्रणमामि भूयस्तं वेङ्कटेशं शरणं प्रपद्ये।
न मत्समो यद्यपि पातकीह न त्वत्समः कारुणिकोऽपि चेह।
विज्ञापितं मे श‍ृणु शेषशायिन् तं वेङ्कटेशं शरणं प्रपद्ये।
वेङ्कटेशाष्टकमिदं त्रिकालं यः पठेन्नरः।
स सर्वपापनिर्मुक्तो वेङ्कटेशप्रियो भवेत्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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