रविसोमनेत्रमघनाशनं विभुं
मुनिबुद्धिगम्य- महनीयदेहिनम्।
कमलाधिशायि- रमणीयवक्षसं
सततं नतोऽस्मि हरिमेकमव्ययम्।
धृतशङ्खचक्रनलिनं गदाधरं
धवलाशुकीर्तिमतिदं महौजसम्।
सुरजीवनाथ- मखिलाभयप्रदं
सततं नतोऽस्मि हरिमेकमव्ययम्।
गुणगम्यमुग्रमपरं स्वयंभुवं
समकामलोभ- मददुर्गुणान्तकम्।
कलिकालरक्षण- निमित्तिकारणं
सततं नतोऽस्मि हरिमेकमव्ययम्।
झषकूर्मसिंह- किरिकायधारिणं
कमलासुरम्य- नयनोत्सवं प्रभुम्।
अतिनीलकेश- गगनाप्तविग्रहं
सततं नतोऽस्मि हरिमेकमव्ययम्।
भवसिन्धुमोक्षदमजं त्रिविक्रमं
श्रितमानुषार्तिहरणं रघूत्तमम्।
सुरमुख्यचित्तनिलयं सनातनं
सततं नतोऽस्मि हरिमेकमव्ययम्।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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