समस्तमुनियक्ष- किंपुरुषसिद्ध- विद्याधर-
ग्रहासुरसुराप्सरो- गणमुखैर्गणैः सेविते।
निवृत्तितिलकाम्बरा- प्रकृतिशान्तिविद्याकला-
कलापमधुराकृते कलित एष पुष्पाञ्जलिः।
त्रिवेदकृतविग्रहे त्रिविधकृत्यसन्धायिनि
त्रिरूपसमवायिनि त्रिपुरमार्गसञ्चारिणि।
त्रिलोचनकुटुम्बिनि त्रिगुणसंविदुद्युत्पदे
त्रयि त्रिपुरसुन्दरि त्रिजगदीशि पुष्पाञ्जलिः।
पुरन्दरजलाधिपान्तक- कुबेररक्षोहर-
प्रभञ्जनधनञ्जय- प्रभृतिवन्दनानन्दिते।
प्रवालपदपीठीका- निकटनित्यवर्तिस्वभू-
विरिञ्चिविहितस्तुते विहित एष पुष्पाञ्जलिः।
यदा नतिबलादहङ्कृतिरुदेति विद्यावय-
स्तपोद्रविणरूप- सौरभकवित्वसंविन्मयि।
जरामरणजन्मजं भयमुपैति तस्यै समा-
खिलसमीहित- प्रसवभूमि तुभ्यं नमः।
निरावरणसंविदुद्भ्रम- परास्तभेदोल्लसत्-
परात्परचिदेकता- वरशरीरिणि स्वैरिणि।
रसायनतरङ्गिणी- रुचितरङ्गसञ्चारिणि
प्रकामपरिपूरिणि प्रकृत एष पुष्पाञ्जलिः।
तरङ्गयति सम्पदं तदनुसंहरत्यापदं
सुखं वितरति श्रियं परिचिनोति हन्ति द्विषः।
क्षिणोति दुरितानि यत् प्रणतिरम्ब तस्यै सदा
शिवङ्करि शिवे पदे शिवपुरन्ध्रि तुभ्यं नमः।
शिवे शिवसुशीतलामृत- तरङ्गगन्धोल्लस-
न्नवावरणदेवते नवनवामृतस्पन्दिनी।
गुरुक्रमपुरस्कृते गुणशरीरनित्योज्ज्वले
षडङ्गपरिवारिते कलित एष पुष्पाञ्जलिः।
त्वमेव जननी पिता त्वमथ बन्धवस्त्वं सखा
त्वमायुरपरा त्वमाभरणमात्मनस्त्वं कलाः।
त्वमेव वपुषः स्थितिस्त्वमखिला यतिस्त्वं गुरुः
प्रसीद परमेश्वरि प्रणतपात्रि तुभ्यं नमः।
कञ्जासनादिसुरवृन्दल- सत्किरीटकोटिप्रघर्षण- समुज्ज्वलदङ्घ्रिपीठे।
त्वामेव यामि शरणं विगतान्यभावं दीनं विलोकय यदार्द्रविलोकनेन।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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