कर्पूरेण वरेण पावकशिखा शाखायते तेजसा
वासस्तेन सुकम्पते प्रतिपलं घ्राणं मुहुर्मोदते।
नेत्राह्लादकरं सुपात्रलसितं सर्वाङ्गशोभाकरं
दुर्गे प्रीतमना भव तव कृते कुर्वे सुनीराजनम्।।१।।


आदौ देवि ददे चतुस्तव पदे त्वं ज्योतिषा भाससे
दृष्ट्वैतन्मम मानसे बहुविधा स्वाशा जरीजृम्भते।
प्रारब्धानि कृतानि यानि नितरां पापानि मे नाशय
दुर्गे प्रीतमना भव तव कृते कुर्वे सुनीराजनम्।।२।।


नाभौ द्विः प्रददे नगेशतनये त्वद्भा बहु भ्राजते
तेन प्रीतमना नमामि सुतरां याचेपि मे कामनाम्।
शान्तिर्भूतिततिर्विभातु सदने निःशेषसौख्यं सदा
दुर्गे प्रीतमना भव तव कृते कुर्वे सुनीराजनम्।।३।।


आस्ये तेऽपि सकृद् ददे द्युतिधरे चन्द्राननं दीप्यते
दृष्ट्वा मे हृदये विराजति महाभक्तिर्दयासागरे।
नत्वा त्वच्चरणौ रणाङ्गनमनःशक्तिं सुखं कामये
दुर्गे प्रीतमना भव तव कृते कुर्वे सुनीराजनम्।।४।।


मातो मङ्गलसाधिके शुभतनौ ते सप्तकृत्वो ददे
तस्मात् तेन मुहुर्जगद्धितकरं सञ्जायते सन्महः।
तद्भासा विपदः प्रयान्तु दुरितं दुःखानि सर्वाणि मे
दुर्गे प्रीतमना भव तव कृते कुर्वे सुनीराजनम्।।५।।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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