शिवांशं त्रयीमार्गगामिप्रियं तं
कलिघ्नं तपोराशियुक्तं भवन्तम्।
परं पुण्यशीलं पवित्रीकृताङ्गं
भजे शङ्कराचार्यमाचार्यरत्नम्।
करे दण्डमेकं दधानं विशुद्धं
सुरैर्ब्रह्मविष्ण्वादिभिर्ध्यानगम्यम्।
सुसूक्ष्मं वरं वेदतत्त्वज्ञमीशं
भजे शङ्कराचार्यमाचार्यरत्नम्।
रवीन्द्वक्षिणं सर्वशास्त्रप्रवीणं
समं निर्मलाङ्गं महावाक्यविज्ञम्।
गुरुं तोटकाचार्यसम्पूजितं तं
भजे शङ्कराचार्यमाचार्यरत्नम्।
चरं सच्चरित्रं सदा भद्रचित्तं
जगत्पूज्यपादाब्जमज्ञाननाशम्।
जगन्मुक्तिदातारमेकं विशालं
भजे शङ्कराचार्यमाचार्यरत्नम्।
यतिश्रेष्ठमेकाग्रचित्तं महान्तं
सुशान्तं गुणातीतमाकाशवासम्।
निरातङ्कमादित्यभासं नितान्तं
भजे शङ्कराचार्यमाचार्यरत्नम्।
पठेत् पञ्चरत्नं सभक्तिर्हि भक्तः
सदा शङ्कराचार्यरत्नस्य नित्यम्।
लभेत प्रपूर्णं सुखं जीवनं सः
कृपां साधुविद्यां धनं सिद्धिकीर्ती।

 

Ramaswamy Sastry and Vighnesh Ghanapaathi

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🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 -मदन शर्मा

मेरे जीवन में सकारात्मकता लाने के लिए दिल से शुक्रिया आपका -Atish sahu

वेदधारा का कार्य सराहनीय है, धन्यवाद 🙏 -दिव्यांशी शर्मा

यह वेबसाइट अद्वितीय और शिक्षण में सहायक है। -रिया मिश्रा

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