वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहते हैं। इसी दिन परशुराम का जन्म हुआ था और त्रेता युग का आरंभ भी इसी दिन हुआ। इस दिन तिलों से पितरों का श्राद्ध किया जाता है। परंपरा के अनुसार, ब्राह्मण को एक जल से भरा कलश, एक पंखा और एक जोड़ी जूते दान किए जाते हैं ताकि परलोक में गर्मी से राहत मिल सके।
विशेष महत्त्व और विधि
इस दिन गंगा स्नान और भगवान कृष्ण को चंदन अर्पित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यव (जौ) का दान और यव से विष्णु पूजा का विधान है। वसंत ऋतु के समापन और ग्रीष्म ऋतु के आरंभ पर चंदन अर्पण का वैज्ञानिक महत्त्व है, क्योंकि चंदन की ठंडी प्रकृति शरीर को शीतलता और राहत प्रदान करती है।
गौरी पूजन का विशेष महत्त्व
इस दिन गौरी की पूजा होती है। सधवा स्त्रियाँ और कन्याएँ गौरी की पूजा कर मिष्ठान्न, फल और भीगे हुए चने बांटती हैं।
अक्षय तृतीया की कथा
'व्रतराज' में वर्णित कथा के अनुसार, महोदय नामक एक वैश्य ने किसी विद्वान से अक्षय तृतीया का माहात्म्य सुना। उसे बताया गया कि यदि यह तिथि बुधवार को रोहिणी नक्षत्र के साथ हो, तो यह अत्यंत फलदायी होती है। इस सुनकर महोदय ने गंगा में स्नान कर पितरों का तर्पण किया। घर आकर उन्होंने कटोरे, अन्न, व्यंजन, छत्र सहित घट, गेहूँ, लवण, सत्तू, दध्योदन, और गुड़ से बने पदार्थ ब्राह्मणों को दान किए।
दान के पुण्य प्रभाव से अगले जन्म में महोदय को कुशावती नाम की नगरी में राजा बनने का सौभाग्य मिला और अक्षय संपत्ति प्राप्त हुई। तभी से इस पर्व का नाम 'अक्षय तृतीया' पड़ा।
अक्षय तृतीया के नियम और परंपराएँ
तृतीया तिथि को यथासंभव चतुर्थी से युक्त लेना चाहिए, द्वितीया से युक्त नहीं। यदि दूसरे दिन तृतीया का समय छह घड़ी से कम हो, तो इसे पहले दिन किया जा सकता है। इस दिन बुधवार, सोमवार और रोहिणी नक्षत्र का होना शुभ माना गया है।
दान का महत्त्व
गर्मियों में जल का घड़ा, पंखा, शर्बत और जौ का सत्तू जैसे पदार्थों का दान ऋतु के अनुसार उपयुक्त हैं। आयुर्वेद में जौ और सत्तू के गुण बताए गए हैं, जो शरीर को शीतलता और बल प्रदान करते हैं। शास्त्रों के अनुसार, दान की गई वस्तु का फल दानकर्ता को अवश्य प्राप्त होता है।
दान का सही तरीका
दान करते समय देश, काल और पात्र का ध्यान रखना चाहिए। पवित्र स्थानों जैसे गंगा तट और मंदिर में दान का अधिक फल मिलता है। पात्र वही है जिसमें सदाचार, विद्या और तप तीनों मौजूद हों। अपात्र को दान देना राख में हवन करने के समान है।
इस प्रकार, दान और उपभोग का भारतीय पद्धति के अनुसार समुचित क्रम और महत्त्व है। दान में ऋतु के अनुकूल उत्तम वस्तुओं का चयन करना चाहिए और इसे श्रद्धापूर्वक करना चाहिए।
मनसा देवी।
माहवारी के दौरान केवल उपवास रख सकते हैं। व्रत के पूजन, दान इत्यादि अंग किसी और से करायें।
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