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सनातन धर्म के भविष्य के लिए वेदधारा के नेक कार्य से जुड़कर खुशी महसूस हो रही है -शशांक सिंह

वेदधारा के साथ ऐसे नेक काम का समर्थन करने पर गर्व है - अंकुश सैनी

आपको नमस्कार 🙏 -राजेंद्र मोदी

जब भी मैं इस मंत्र को सुनता हूं तो मुझे अच्छा महसूस होता है 🙏🙏🙏🙏 -श्रुति गुप्ता

वेदधारा सनातन संस्कृति और सभ्यता की पहचान है जिससे अपनी संस्कृति समझने में मदद मिल रही है सनातन धर्म आगे बढ़ रहा है आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏 -राकेश नारायण

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ॐ नमो हनुमते रुद्रावताराय भक्तजनमनःकल्पनाकल्पद्रुमाय दुष्टमनोरथस्तम्भनाय प्रभञ्जनप्राणप्रियाय महाबलपराक्रमाय महाविपत्तिनिवारणाय पुत्रपौत्रधनधान्यादिविविधसम्पत्प्रदाय रामदूताय स्वाहा ।

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गौ सूक्त

आ गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्सीदन्तु गोष्ठे रणयन्त्वस्मे। प्रजावतीः पुरुरूपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः। इन्द्रो यज्वने पृणते च शिक्षत्युपेद्ददाति न स्वं मुषायति। भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्नभिन्ने खिल्ये नि दधाति देवयुम्। न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति। देवाँश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित्ताभिः सचते गोपतिः सह। न ता अर्वा रेणुककाटो अश्नुते न संस्कृतत्रमुप यन्ति ता अभि। उरुगायमभयं तस्य ता अनु गावो मर्तस्य वि चरन्ति यज्वनः। गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छान्गावः सोमस्य प्रथमस्य भक्षः। इमा या गावः स जनास इन्द्र इच्छामीद्धृदा मनसा चिदिन्द्रम्। यूयं गावो मेदयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम्। भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु। प्रजावतीः सूयवसं रिशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः। मा व स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः। उपेदमुपपर्चनमासु गोषूप पृच्यताम्। उप ऋषभस्य रेतस्युपेन्द्र तव वीर्ये। ऋग्वेद.६.२८

ऐतिह्य की परिभाषा

ऐतिह्य उन पारंपरिक वृत्तांतों या किंवदंतियों को संदर्भित करती है जो किसी विशिष्ट व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराए बिना पीढ़ियों से चली आ रही हैं। इन्हें विद्वानों और समुदाय द्वारा व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है और कायम रखा जाता है, जो सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत का एक हिस्सा है।

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गणेशजी का ऐसा कौन सा स्वरूप है जिसकी साधना में शरीर की स्वच्छता मुख्य नहीं है ?

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