सबसे पहले देवता के मूल मंत्र से तीन बार फूल चढायें। ढोल, नगारे, शङ्ख, घण्टा आदि वाद्यों के साथ आरती करनी चाहिए। बत्तियों की संख्या विषम (जैसे १, ३, ५, ७) होनी चाहिए। आरती में दीप जलाने के लिए घी का ही प्रयोग करें। कपूर से भी आरती की जाती है। दीपमाला को सब से पहले देवता की चरणों में चार बार घुमाये, दो बार नाभिदेश में, एक बार चेहरे के पास और सात बार समस्त अङ्गोंपर घुमायें। दीपमाला से आरती करने के बाद, क्रमशः जलयुक्त शङ्ख, धुले हुए वस्त्र, आम और पीपल आदि के पत्तों से भी आरती करें। इसके बाद साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम करें।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रं ॐ स्वाहा ॐ गरुड सं हुँ फट् । किसी रविवार या मंगलवार के दिन इस मंत्र को दस बर जपें और दस आहुतियां दें। इस प्रकार मंत्र को सिद्ध करके जरूरत पडने पर मंत्र पढते हुए फूंक मारकर भभूत छिडकें ।