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😊😊😊 -Abhijeet Pawaskar

आपका प्रयास सराहनीय है,आप सनातन संस्कृति को उन्नति के शिखर पर ले जा रहे हो हमारे जैसे अज्ञानी भी आप के माध्यम से इन दिव्य श्लोकों का अनुसरण कर अपने जीवन को सार्थक बनाने में लगे हैं🙏🙏🙏 -User_soza7d

हिंदू धर्म के पुनरुद्धार और वैदिक गुरुकुलों के समर्थन के लिए आपका कार्य सराहनीय है - राजेश गोयल

Om namo Bhagwate Vasudevay Om -Alka Singh

आपका हिंदू शास्त्रों पर ज्ञान प्रेरणादायक है, बहुत धन्यवाद 🙏 -यश दीक्षित

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श्रीराम जी का अचल स्वरूप

श्रीराम जी न तो कहीं जाते हैं, न कहीं ठहरते हैं, न किसी के लिए शोक करते हैं, न किसी वस्तु की आकांक्षा करते हैं, न किसी का परित्याग करते हैं, न कोई कर्म करते हैं। वे तो अचल आनन्दमूर्ति और परिणामहीन हैं, अर्थात उनमें कोई परिवर्तन नहीं होता। केवल माया के गुणों के संबंध से उनमें ये बातें होती हुई प्रतीत होती हैं। श्रीराम जी परमात्मा, पुराणपुरुषोत्तम, नित्य उदय वाले, परम सुख से सम्पन्न और निरीह अर्थात् चेष्टा से रहित हैं। फिर भी माया के गुणों से सम्बद्ध होने के कारण उन्हें बुद्धिहीन लोग सुखी अथवा दुखी समझ लेते हैं।

यजुर्वेद से दिव्य मार्गदर्शन

यजुर्वेद का पवित्र आदेश है कि यह चराचरात्मक सृष्टि परमेश्वर से व्याप्य है, जो सर्वाधार, सर्वनियन्ता, सर्वाधिपति, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, और सभी गुणों तथा कल्याण का स्वरूप हैं। इसे समझते हुए, परमेश्वर को सदा अपने साथ रखें, उनका निरंतर स्मरण करें, और इस जगत में त्यागभाव से केवल आत्मरक्षार्थ कर्म करें तथा इन कर्मों द्वारा विश्वरूप ईश्वर की पूजा करें। अपने मन को सांसारिक मामलों में न उलझने दें; यही आपके कल्याण का मार्ग है। वस्तुतः ये भोग्य पदार्थ किसी के नहीं हैं। अज्ञानवश ही मनुष्य इनमें ममता और आसक्ति करता है। ये सब परमेश्वर के हैं और उन्हीं के लिए इनका उपयोग होना चाहिए। परमेश्वर को समर्पित पदार्थों का उपभोग करें और दूसरों की संपत्ति की आकांक्षा न करें।

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इनमें से देवेन्द्र का वाहन कौनसा है ?

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