दुख माया के कारण उत्पन्न होता है, जो वास्तविकता की गलत समझ पैदा करता है। नश्वर वस्तुओं से आसक्ति और झूठे अहंकार से पहचान ही दुख की जड़ें हैं। इससे मुक्त होने का मार्ग सत्य और आत्मस्वरूप की पहचान में है। जब हम समस्त सृष्टि की एकता को समझते हैं और सीमित अहंकार को पीछे छोड़ते हैं, तब दुख मिटने लगता है। इसके लिए शरीर और मन की शुद्धि आवश्यक है, साथ ही ज्ञान और वैराग्य का विकास भी। ध्यान, मनन और निष्काम कर्म जैसे आध्यात्मिक साधन माया के भ्रम को दूर कर आत्मज्ञान तक पहुंचने में सहायता करते हैं।
गायत्री मंत्र के देवता सविता यानि सूर्य हैं। परंतु मंत्र को स्त्रीरूप मानकर गायत्री, सावित्री, और सरस्वती को भी इस मंत्र के अभिमान देवता मानते हैं।
ज्ञान के लिए अथर्ववेद का मेधा सूक्त
ये त्रिषप्ताः परियन्ति विश्वा रूपाणि बिभ्रतः । वाचस्पत�....
Click here to know more..रक्षा के लिए मृत्युंजय मंत्र
ॐ जूं सः चण्डविक्रमाय चतुर्मुखाय त्रिनेत्राय स्वाहा सः �....
Click here to know more..आञ्जनेय पंचरत्न स्तोत्र
रामायणसदानन्दं लङ्कादहनमीश्वरम्। चिदात्मानं हनूमन्तं....
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