क्यों कि उन्होंने ही वेद को चार भागों में विभाजित किया।
देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते । देवताभ्यो हि पूर्वं पितॄणामाप्यायनं वरम्॥ (हेमाद्रिमें वायु तथा ब्रह्मवैवर्तका वचन) - देवकार्य की अपेक्षा पितृकार्य की विशेषता मानी गयी है। अतः देवकार्य से पूर्व पितरों को तृप्त करना चाहिये।
वरुण सूक्त
उदु॑त्त॒मं व॑रुण॒पाश॑म॒स्मदवा॑ध॒मं विम॑ध्य॒मꣳ श्र॑था....
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