राजा दिलीप के कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने अपनी रानी सुदक्षिणा के साथ वशिष्ठ ऋषि की सलाह पर उनकी गाय नन्दिनी की सेवा की। वशिष्ठ ऋषि ने उन्हें बताया कि नन्दिनी की सेवा करने से उन्हें पुत्र प्राप्त हो सकता है। दिलीप ने पूरी निष्ठा और श्रद्धा के साथ नन्दिनी की सेवा की, और अंततः उनकी पत्नी ने रघु नामक पुत्र को जन्म दिया। यह कहानी भक्ति, सेवा, और धैर्य का प्रतीक मानी जाती है। राजा दिलीप की कहानी को रामायण और पुराणों में एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है कि कैसे सच्ची निष्ठा और सेवा से मनुष्य अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
संतों को ज्ञान, मार्गदर्शन और आशा के स्रोत के रूप में देखा जाता है। आज के समय भी संत हमें नैतिकता, करुणा और विश्वास के साथ जीवन जीने का उदाहरण देते हैं। उनकी शिक्षाएं उत्तरोत्तर प्रासंगिक होते जा रहे हैं। वे कठिन समय में भी लचीलापन और विश्वास के साथ जीना सिखाते हैं।