एक बार की बात है, चिंटू नाम का एक छोटा खरगोश था। चिंटू को जंगल में उछल-कूद करना बहुत पसंद था। एक धूप भरे दिन चिंटू ने एक गिलहरी को पेड़ के नीचे रोते हुए पाया जिसका नाम सोनू था। सोनू के सारे मेवे गिर गए थे और वह उन्हें अपने घर वापस नहीं ले जा सका।
चिंटू को सोनू के लिए दुख हुआ। इसलिए, चिंटू उछलकर उसके पास गया और बोला, 'चिंता मत करो, सोनू! मैं तुम्हारी मदद करूँगा।' चिंटू और सोनू ने मिलकर सारे मेवे उठाए। सोनू मुस्कुराया और बोला, 'धन्यवाद, चिंटू! तुम बहुत दयालु हो।'
अगले दिन, चिंटू नदी के पास खेल रहा था। अचानक, वह फिसल गया और मोटी मिट्टी में फंस गया। उसने बाहर कूदने की कोशिश की लेकिन वह नहीं निकल पाया। उसे डर लगने लगा। तभी, सोनू ने चिंटू को देखा। उसे याद आया कि चिंटू कितना दयालु था। सोनू ने जल्दी से अपने दोस्तों को बुलाया और वे सब मिलकर चिंटू को मिट्टी से बाहर निकाला।
चिंटू सुरक्षित और खुश था। उसने सोनू को गले लगाया और कहा, 'बहुत-बहुत धन्यवाद, सोनू!' सोनू मुस्कुराया और बोला, 'तुमने मेरी मदद की, इसलिए मैंने तुम्हारी मदद की। दयालुता से सभी खुश होते हैं!'
उस दिन से, चिंटू और सोनू सबसे अच्छे दोस्त बन गए। वे हमेशा जंगल में दूसरों की मदद करते थे, और हर कोई उनकी दयालुता के लिए उनसे प्यार करता था।
दयालुता दुनिया को एक बेहतर जगह बनाती है।
एक बार ब्रह्मा ने बहुत अधिक अमृत पिया और वमन किया। उससे सुरभि उत्पन्न हुई।
सुपुष्ट सुंदर और दूध देने वाली गाय को बछडे के साथ दान में देना चाहिए। न्याय पूर्वक कमायी हुई धन से प्राप्त होनी चाहिए गौ। कभी भी बूढी, बीमार, वंध्या, अंगहीन या दूध रहित गाय का दान नही करना चाहिए। गाय को सींग में सोना और खुरों मे चांदी पहनाकर कांस्य के दोहन पात्र के साथ अच्छी तरह पूजा करके दान में देते हैं। गाय को पूरब या उत्तर की ओर मुह कर के खडा करते हैं और पूंछ पकडकर दान करते हैं। स्वीकार करने वाला जब जाने लगता है तो उसके पीछे पीछे आठ दस कदम चलते हैं। गोदान का मंत्र- गवामङ्गेषु तिष्ठन्ति भुवनानि चतुर्दश। तस्मादस्याः प्रदानेन अतः शान्तिं प्रयच्छ मे।