मानव जीवन एक अनमोल उपहार है। यह जीवन हमें भगवान का स्मरण करने और उनके चरणों में समर्पण भाव से लीन होने का अवसर देता है। भगवान की भक्ति और उनका नाम स्मरण करना ही इस जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। श्रीमद्भागवत के अनुसार, यह समय न केवल भौतिक जीवन जीने का है, बल्कि अपने जीवन को आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक पहुंचाने का भी है।
भगवान श्रीकृष्ण भगवद गीता में कर्म का महत्व बताते हैं:
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥"
अर्थात् - "तुम्हारे अधिकार केवल कर्म पर हैं, फल की चिंता मत करो। कर्म ही महत्वपूर्ण है, फल की अपेक्षा किए बिना कर्म करो।"
यह श्लोक बताता है कि हमें निरंतर सही कर्म करना चाहिए, भले ही उसका फल कैसा भी हो। मनुष्य का यह जीवन सत्कर्मों और भक्ति के लिए है।
मनुष्य जीवन का उद्देश्य
मनुष्य का जन्म केवल सांसारिक सुखों का भोग करने के लिए नहीं हुआ है। इसे हम साधारण कर्मों में नष्ट नहीं कर सकते, क्योंकि मानव जीवन एक अनमोल अवसर है जो हमें आत्मज्ञान और भगवान के सान्निध्य की प्राप्ति के लिए दिया गया है।
श्रीरामचरितमानस में भी कहा गया है:
"धन्य जन्म मुनि सुनत पितु माता।
परम भाग्य तात परिपाता॥"
अर्थात् - "जिसका जन्म भगवान की भक्ति के लिए हुआ हो, वह जीवन धन्य है।"
यह श्लोक बताता है कि यदि मनुष्य भगवान की भक्ति में जीवन व्यतीत करता है, तो वह जन्म सफल हो जाता है।
भगवान का स्मरण और उसका फल
सच्चे भक्तों को भगवान का नाम निरंतर स्मरण करना चाहिए, क्योंकि भगवान का नाम और उनकी कृपा ही इस जीवन के असली धन हैं। जब मनुष्य भगवान के नाम की महिमा का अनुभव करता है, तब वह सांसारिक मोह से दूर हो जाता है। संसार में चाहे कितनी भी धन-दौलत क्यों न हो, परंतु जब मृत्यु का समय आता है, तब कुछ भी साथ नहीं जाता। केवल भगवान का नाम ही साथ चलता है।
भगवान को कौन आसानी से प्राप्त कर सकता है इस पर श्रीकृष्ण कहते हैं -
"अनन्यचेताः सततं यो मां स्मरति नित्यशः।
तस्याऽहं सुलभः पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिनः।।"
अर्थात् - जो योगी दूसरे विषयों पर मन न लगाते हुए मेरा नित्य स्मरण करता रहेगा, उस के लिए मुझे प्राप्त करना बहुत ही सुलभ होगा ।
भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है:
"अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम्।
यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः॥"
अर्थात् - "जो मनुष्य अंतिम समय में भगवान का स्मरण करता है, वह मोक्ष को प्राप्त होता है। इसमें कोई संशय नहीं है।"
इसलिए, हर समय भगवान के नाम का स्मरण करना चाहिए, क्योंकि भगवान का नाम हमें इस संसार के बंधनों से मुक्त कराता है और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग दिखाता है।
भक्ति का मार्ग और इसका महत्व
भक्ति का मार्ग वह है जो हमें भगवान के चरणों तक ले जाता है। यह मार्ग सरल होते हुए भी कठिनाइयों से भरा होता है, क्योंकि सांसारिक माया हमें बार-बार अपनी ओर खींचने की कोशिश करती है। किंतु जो भक्त भगवान में पूरी श्रद्धा रखते हैं, उन्हें संसार की कोई भी शक्ति भक्ति के मार्ग से विचलित नहीं कर सकती। भगवान शिव ने माता पार्वती को भी यही बताया कि जो भक्त भगवान के चरणों में पूर्ण विश्वास रखता है, उसे किसी और चीज की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
गीता में भी यह उल्लेख है:
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥"
अर्थात्: "जो भक्त अनन्य भाव से मेरा स्मरण करते हैं, उनके योगक्षेम की जिम्मेदारी मैं स्वयं लेता हूँ।"
यह श्लोक इस बात की पुष्टि करता है कि यदि हम पूरी श्रद्धा से भगवान का नाम स्मरण करते हैं, तो वह हमारे सभी कष्टों का निवारण करते हैं।
अतः, यह मानव जीवन भगवान की भक्ति और उनके नाम के स्मरण में व्यतीत करना चाहिए। यही जीवन का असली सार और उद्देश्य है।
इस शरीर के माध्यम से जीव अपने पुण्य और पाप कर्मों के फलस्वरूप सुख-दुख का अनुभव करता है। इसी शरीर से पापी यमराज के मार्ग पर कष्ट सहते हुए उनके पास पहुँचते हैं, जबकि धर्मात्मा प्रसन्नतापूर्वक धर्मराज के पास जाते हैं। विशेष रूप से, केवल मनुष्य ही मृत्यु के बाद एक सूक्ष्म आतिवाहिक शरीर धारण करता है, जिसे यमदूत यमराज के पास ले जाते हैं। अन्य जीव-जंतु, जैसे पशु-पक्षी, ऐसा शरीर नहीं पाते। वे सीधे दूसरी योनि में जन्म लेते हैं। ये प्राणी मृत्यु के बाद वायु रूप में विचरण करते हुए किसी विशेष योनि में जन्म लेने के लिए गर्भ में प्रवेश करते हैं। केवल मनुष्य को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल इस लोक और परलोक दोनों में भोगना पड़ता है।
श्रीराम जी की प्रतिज्ञा थी कि सीता के अलावा कोई भी अन्य महिला उनकी मां कौशल्या के समकक्ष होगी। उन्होंने वादा किया कि वह किसी दूसरी महिला से शादी नहीं करेंगे और न ही इसके बारे में सोचेंगे। यज्ञों के लिए आवश्यक होने पर भी, राम ने दूसरी पत्नी का चयन नहीं किया; इसके बजाय, सीता की स्वर्ण प्रतिमा उनके बगल में रखी गई थी।
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