गोपीगीत में गोपिकाएं गाती हैं -

"जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि ।
दयित दृश्यतां दिक्षु तावकास्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ।।"

हे कृष्ण, आपके जन्म के कारण यह व्रजभूमि पहले से भी अधिक महिमा को प्राप्त कर रही है । क्योंकि वैकुंठवासिनी श्रीलक्ष्मी देवी भी आपकी सेवा करने के लिए यहां प्रतीक्षा कर रही है । हम गोपांगनाएं आपके वियोग के कारण संतप्त और क्षीण होकर आपके लिए ही प्राण धारण कर रहे हैं । आप कृपया आविर्भूत होकर हमें देखें ।

कृष्ण के जन्म की महिमा:

गोपियाँ श्रीकृष्ण से विनती करती हैं कि आपके जन्म के कारण समस्त ब्रजभूमि में अद्वितीय आनंद और शांति का वातावरण बना हुआ है। वे यह भी कहती हैं कि आपका यह अवतार महात्म्यपूर्ण है, क्योंकि आपके कारण पृथ्वी पर पुण्य और धर्म का पुनर्जागरण हो रहा है। ब्रजधाम का पूर्वाभास और सर्वश्रेष्ठ उन्नति आपकी कृपा से ही संभव हो पा रही है।

गोपियाँ यह मानती हैं कि स्वर्गलोक के देवता भी आपकी सेवा के लिए तत्पर हैं। भगवान इन्द्र स्वयं आपके उपस्थिति में धनुषबाण को छोड़कर आपकी उपासना में लीन हैं और ब्रजभूमि में उनकी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

व्रजवासियों का भाग्य:

"यत्पादपांसुर्बहुजन्मकृच्छ्रतो धृतात्मभिर्योगिभिरप्यलभ्यः ।
स एव यद्दृग्विषयः स्वयं स्थितः किं वर्ण्यते दिष्टमथो व्रजौकसाम् ।।"

जिस व्रजभूमि में श्रीकृष्ण के चरणकमल मे स्पृष्ट धूल का कण, जन्मों से कठिन तपस्या में आसक्त मुनियों के लिए भी दुर्लभ है, उसी व्रजभूमि में निवास करके प्रतिदिन श्रीकृष्ण की लीलाओं को देखने वाले व्रजवासियों के भाग्य पर क्या कहना है?

व्रजवासियों का अद्वितीय सौभाग्य:

यह श्लोक व्रजवासियों की अनोखी स्थिति की प्रशंसा करता है, जो साधारण ग्रामीण होने के बावजूद भगवान श्रीकृष्ण के सीधे संपर्क में रहते थे। उनका सौभाग्य उन योगियों से भी अधिक है, जो भगवान के दर्शन के लिए कठिन तपस्या करते हैं। यह श्लोक यह भी बताता है कि श्रीमद्भागवत दर्शन में भक्ति (प्रेम और समर्पण), ज्ञान और योग से श्रेष्ठ मानी जाती है।

गोपियां और भूमि का संवाद:

"किन्ते तपः क्षिति कृतं बत केशवाङ्घ्रिस्पर्शोत्सवोत्पुलकिताङ्गरुहैर्विभासि ।
अप्यङ्घ्रिसम्भव उरुक्रमविक्रमाद्वा आहो वराहवपुषः परिरम्भणेन ‌‌।।"

गोपियां भूमि से पूछती है -
हे धरित्री, आपने ऐसी कौन सी तपस्या की? जिस के कारण आपको मदनमोहन श्रीकृष्ण भगवान के पादारविंद के संस्पर्श का भाग्य प्राप्त हुआ?

भूमि कहती है -
आप के श्रीकृष्ण तो अभी अभी आविर्भूत हुए। पर मेरे शरीर में बहुत पहले ही दूर्वा और लता के रूप में रोमांच हो चुका है।

गोपियां कहती है -
हे भूमि, श्याम सुंदर श्रीकृष्ण के पादस्पर्श के बिना ऐसा रोमांच असम्भव है। जब श्रीकृष्ण ने वराहरूप का धारण किया था तब उन्होनें रसातल से तुम्हारा उद्धार किया था। यह ही इस का एकमात्र कारण है।

गोपियों का प्रेम:

गोपियों श्रीकृष्ण भगवान् पर अपनी ही अधिकारात्मकता मानती है। उनको उन हर वस्तु से असूया होती है जो श्रीकृष्ण भगवान के पास सर्वदा रहते हैं। जैसे भूमि, कृष्ण के वस्त्र, श्रीकृष्ण की बांसुरी इत्यादि। अपने अलावा कृष्ण किसी के साथ न रहें, श्रीकृष्ण का प्रेम सिर्फ उनको ही मिले, ऐसा उनके मन में इच्छा हमेशा रहती है। यह ही उनका सच्चा प्रेम है।

सभी स्थानों मे मथुरा श्रेष्ठ:

"काश्यादिपुर्यो यदि सन्तु लोके तेषां तु मध्ये मथुरैव धन्या ।"

इस संसार में काशी, उज्जयिनी इत्यादि मंगल प्रसारक पुरियों के होते हुए भी उन सभी में मथुरा ही सब से धन्य है ।

मथुरा की विशेषता:

इस श्लोक में बताया गया है कि काशी, अयोध्या, द्वारका आदि जैसे अनेक पवित्र और धार्मिक नगरों के होते हुए भी मथुरा विशेष रूप से श्रेष्ठ है, क्योंकि यह भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है। अन्य तीर्थस्थान भी पवित्र हैं, पर मथुरा का महत्व अद्वितीय है। यह मथुरा सभी तीर्थस्थान, पुण्यस्थली और मंदिरों से भी बढकर है।

यह ही कुछ ऐसे कारण‌ है जो आज भी श्रीकृष्ण भगवान के भक्त व्रजभूमि में जाने के लिए और वहां बसने के लिए तरसते हैं।

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सनातन धर्म के भविष्य के प्रति आपकी प्रतिबद्धता अद्भुत है 👍👍 -प्रियांशु

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घर पर आरती कैसे करें?

सबसे पहले देवता के मूल मंत्र से तीन बार फूल चढायें। ढोल, नगारे, शङ्ख, घण्टा आदि वाद्यों के साथ आरती करनी चाहिए। बत्तियों की संख्या विषम (जैसे १, ३, ५, ७) होनी चाहिए। आरती में दीप जलाने के लिए घी का ही प्रयोग करें। कपूर से भी आरती की जाती है। दीपमाला को सब से पहले देवता की चरणों में चार बार घुमाये, दो बार नाभिदेश में, एक बार चेहरे के पास और सात बार समस्त अङ्गोंपर घुमायें। दीपमाला से आरती करने के बाद, क्रमशः जलयुक्त शङ्ख, धुले हुए वस्त्र, आम और पीपल आदि के पत्तों से भी आरती करें। इसके बाद साष्टाङ्ग दण्डवत् प्रणाम करें।

श्वित्र ( सफ़ेद दाग) और रक्ताल्पता का कारण क्या है?

कर्म विपाक संहिता के अनुसार, देवताओं की पूजा की उपेक्षा करने से शरीर में श्वित्र ( सफ़ेद दाग) और रक्ताल्पता जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं। नियमित भक्ति और आध्यात्मिक अभ्यास हमारे आध्यात्मिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। दिव्य शक्ति की आराधना करके, हम अपने जीवन में सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करते हैं, जो हमारे भीतर शांति, समरसता और समग्र कल्याण को बढ़ावा देती है। दैनिक पूजा में संलग्न होकर, व्यक्ति अपनी आत्मा के साथ गहरा संबंध स्थापित करता है और संतुलित और स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करता है। इसलिए, आध्यात्मिक अभ्यासों के लिए समय निकालना और उन्हें अपने दैनिक जीवन में शामिल करना महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये न केवल हमारी आत्मा को समृद्ध करते हैं बल्कि संभावित बीमारियों से हमारे शरीर की रक्षा भी करते हैं।

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