प्राचीन भारत में गाय को धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से समाज का अभिन्न अंग माना गया है। वेदों, पुराणों, और अन्य धार्मिक ग्रंथों में गाय को 'अघ्न्या' के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका अर्थ है जो मारा नहीं जा सकता। गाय को यज्ञ, कृषि, और मानव स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य समझा जाता था। आधुनिक काल में भी गाय की सुरक्षा की मांग बढ़ी है।
भगवद्गीता कहती है -
अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः।।
सभी जीव अन्न से उत्पन्न होते हैं, और अन्न बारिश से प्राप्त होता है। बारिश यज्ञ से उत्पन्न होती है, और यज्ञ कर्म से होता है। गाय यज्ञों का आधार है, क्योंकि यज्ञों में उपयोग की जाने वाली सामग्री गायों से ही प्राप्त होती है। इस प्रकार, गाय को विश्व का पोषक माना जाता था।
प्राचीन काल में गाय की हत्या को अत्यंत बड़ा पाप माना गया। वेदों और पुराणों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि गाय की हत्या नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह जीवन का स्रोत और समाज की समृद्धि का प्रतीक है। गोहत्या पर रोक लगाने की मांग आज भी व्यापक रूप से की जा रही है, क्योंकि करोड़ों भारतवासियों के लिए गाय धार्मिक प्रतीक है।
ऋग्वेद में गोहत्या पर रोक लगाते हुए कहा गया है -
मा गामनागामदितिं वधिष्ट।
निर्दोष और पवित्र गाय को कभी मत मारो।
यह गाय की पवित्रता और उसकी रक्षा के महत्व को स्पष्ट रूप से बताता है।
अघ्न्या या देव ऋणिता सदा दिवा...
(ऋग्वेद 1.164.27)
गाय पवित्र है और उसे मारने का अधिकार किसी को नहीं है। उसे सदा सुरक्षित रखा जाना चाहिए।
गाय के बिना यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठान भी अधूरे माने जाते थे। यज्ञों में गाय के दूध, घी और गोबर का उपयोग अनिवार्य था।
वेद में कहा गया है:
गावो यज्ञस्य हि फलं गोषु यज्ञः प्रतिष्ठितः।
यज्ञ का फल गायों के कारण से ही प्राप्त होता है, और यज्ञ का अस्तित्व भी गायों पर निर्भर है। गाय से प्राप्त सामग्री के बिना यज्ञ कभी पूरा नहीं हो सकता।
आयुर्वेद में गाय के दूध और उससे बने उत्पादों को अत्यंत लाभकारी माना गया है। गोमूत्र और गोबर का भी चिकित्सा और शुद्धिकरण के लिए व्यापक उपयोग होता है। आयुर्वेद में गाय के दूध को शरीर के पोषण और ताकत के लिए महत्वपूर्ण बताया गया है।
यूयं गावो मेदयथाः कृशाधित् (अथर्ववेद 6.28)
हे गायो! तुम उस व्यक्ति को पोषण प्रदान करती हो जिसका शरीर कमजोर हो गया हो।
गाय के दूध में वह पोषण होता है जो शरीर को ऊर्जा और ताकत देता है।
गाय के गोमूत्र और गोबर का प्राचीन भारतीय समाज में चिकित्सा के लिए उपयोग किया जाता था। गोबर का उपयोग खेतों में उर्वरक के रूप में और घरों में शुद्धिकरण के लिए भी किया जाता था। गोमूत्र को औषधीय गुणों से युक्त माना गया और कई बीमारियों के इलाज में इसका उपयोग किया जाता था।
बृहद्धर्मपुराण में कहा गया है -
गवां मूत्रं पुरीषं च पवित्रं परमं मतम्।
गाय का मूत्र और गोबर अत्यंत पवित्र माने गए हैं। यह शुद्धिकरण और रोगों के निवारण के लिए उपयोगी होते हैं।
इस लिए वैदिक यज्ञ व लौकिक जीवन के लिए सभी जीवों में से गाय सब से प्रमुख मानी जाती है।
गोवत्स द्वादशी कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष द्वादशी को मनायी जाती है।
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