पर्वता दूरतो रम्याः समुद्राणि च भूतले ।
युद्धस्य तु कथा रम्या त्रीणि रम्यानि दूरतः ।।
पर्वत और समुद्र, दूर से देखने में ही अच्छे लगते हैं । पास जाने पर ये दोनों विपत्तिजनक होते हैं । युद्ध, कहानियों में ही अच्छा लगता है । यदि निजी जीवन में किसी के साथ युद्ध हो गया तो वह अच्छा नहीं होता ।
न्यायालय में गवाही देने से पहले, व्यक्ति को पवित्र ग्रंथों जैसे कि भगवद गीता पर शपथ लेनी होती है। प्राचीन न्यायालयों में भी ऐसा ही एक नियम था। क्षत्रियों को अपने हथियार की शपथ लेनी होती थी, वैश्यों को अपने धन की, और शूद्रों को अपने कर्मों की। परन्तु, ब्राह्मणों को ऐसी कोई शपथ नहीं लेनी होती थी। इसका कारण यह था कि वेदों के रक्षक से कभी असत्य बोलने की अपेक्षा नहीं की जाती थी। समाज की उनसे बहुत उच्च अपेक्षाएँ थीं। लेकिन यदि कभी उन्हें झूठ बोलते हुए पाया जाता था, तो उन्हें अन्य लोगों से अधिक कठोर सजा दी जाती थी।
शूद्र चातुर्वर्ण्य व्यवस्था का एक वर्ण है। सूत ब्राह्मण स्त्री में उत्पन्न क्षत्रिय की सन्तान है । वर्ण व्यवस्था के अनुसार सूत का स्थान क्षत्रियों के नीचे और वैश्यों के ऊपर था पेशे से ये पुराण कथावाचक और सारथी होते थे।