रघुवर तुमको मेरी लाज ।
सदा सदा मैं सरन तिहारी,
तुम हो गरीब निवाज़ ॥
पतित उधारन बिरुद तिहारो,
स्रवनन सुनी आवाज ।
तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज …
हौं तो पतित पुरातन कहिए,
पार उतारो जहाज ॥
तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज …
अघ खंडन दुःख भंजन जन के,
यही तिहारो काज ।
तुलसीदास पर किरपा कीजै,
भक्ति दान देहु आज ॥
तुमको मेरी लाज, रघुवर तुमको मेरी लाज …
लोमहषण ने।
भगवान हनुमान जी ने सेवा, कर्तव्य, अडिग भक्ति, ब्रह्मचर्य, वीरता, धैर्य और विनम्रता के उच्चतम मानकों का उदाहरण प्रस्तुत किया। अपार शक्ति और सामर्थ्य के बावजूद, वे विनम्रता, शिष्टता और सौम्यता जैसे गुणों से सुशोभित थे। उनकी अनंत शक्ति का हमेशा दिव्य कार्यों को संपन्न करने में उपयोग किया गया, इस प्रकार उन्होंने दिव्य महानता का प्रतीक बन गए। यदि कोई अपनी शक्ति का उपयोग लोक कल्याण और दिव्य उद्देश्यों के लिए करता है, तो परमात्मा उसे दिव्य और आध्यात्मिक शक्तियों से विभूषित करता है। यदि शक्ति का उपयोग बिना इच्छा और आसक्ति के किया जाए, तो वह एक दिव्य गुण बन जाता है। हनुमान जी ने कभी भी अपनी शक्ति का उपयोग तुच्छ इच्छाओं या आसक्ति और द्वेष के प्रभाव में नहीं किया। उन्होंने कभी भी अहंकार को नहीं अपनाया। हनुमान जी एकमात्र देवता हैं जिन्हें अहंकार कभी नहीं छू सका। उन्होंने हमेशा निःस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन किया, निरंतर भगवान राम का स्मरण करते रहे।