वनेऽपि सिंहा मृगमांसभक्षिणो बुभुक्षिता नैव तृणं चरन्ति |
एवं कुलीना व्यसनाभिभूता न नीचकर्माणि समाचरन्ति ||
वन में अन्य मृगों के मांस को खाने वाले सिंह भूंख लगने पर भी कभी घास नहीं खाते | ऐसे ही अच्छे कुल में पैदा हुए लोग नशे से धुत के समय पर भी कभी नीच करम का आचरण नहीं करते |
जो सत्य के मार्ग पर चलता है वह महानता प्राप्त करता है। झूठ से विनाश होता है, परन्तु सच्चाई से महिमा होती है। -महाभारत
व्यासजी ने १८ पर्वात्मक एक पुराणसंहिता की रचना की। इसको लोमहर्षण और उग्रश्रवा ने ब्रह्म पुराण इत्यादि १८ पुराणों में विभजन किया।