करचरणकृतं वाक्कायजं कर्मजं वा ।
श्रवणनयनजं वा मानसं वापराधम ।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व ।
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेवशम्भो ॥
हे करुणा के सागर, श्रीमहादेव शम्भु! कर, चरण, वाणी, शरीर, कर्म, श्रवण, नेत्र या मन से जाने-अनजाने में जो भी अपराध हुआ हो, कृपया उसे क्षमा करें।
करचरणकृतं (कर द्वारा और चरण द्वारा किया हुआ) वाक्कायजं (वाणी और शरीर से किया हुआ) कर्मजं वा (कर्म से उत्पन्न हुआ) श्रवणनयनजं वा (श्रवण और नेत्र द्वारा किया हुआ) मानसं वा (मन से किया हुआ) अपराधम् (अपराध) विहितम् (निर्धारित) अविहितम् वा (अनिर्धारित) सर्वम् एतत् (यह सब) क्षमस्व (क्षमा करें) जय जय (विजयी हो) करुणाब्धे (करुणा के सागर) श्रीमहादेवशम्भो (हे श्रीमहादेव शम्भु)।
यह श्लोक भगवान शिव से समर्पण और क्षमा की प्रार्थना है। इसमें बताया गया है कि मनुष्य से जाने-अनजाने में जो भी गलतियाँ होती हैं, चाहे वे किसी भी प्रकार की हों, उन सभी के लिए भगवान शिव से क्षमा की प्रार्थना की जाती है।
श्लोक के जाप के लाभ:
इस श्लोक का नियमित जाप करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है और उसे मानसिक शांति प्राप्त होती है। भगवान शिव की कृपा से जीवन में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं और भक्त को जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
श्रीकृष्ण और बलराम जी के चारों तरफ घंटी और घुंघरू की आवाज निकालती हुई गाय ही गाय हैं। गले में सोने की मालाएं, सींगों पर सोने का आवरण और मणि, पूंछों में नवरत्न का हार। वे सब बार बार उन दोनों के सुन्दर चेहरों को देखती हैं।
भगवान विष्णु के पवित्र नामों का गायन सभी समय और स्थानों पर किया जा सकता है। इस भगवान के कीर्तन (जाप) के लिए कोई अशुद्धता का सवाल ही नहीं उठता जो सदा पवित्र हैं। भगवान की उपासना के लिए समय, स्थान या शुद्धता पर कोई प्रतिबंध नहीं है, क्योंकि वे हमेशा पवित्र होते हैं। यह दर्शाता है कि कोई भी कृष्ण, गोविंद और हरि के नामों का जाप हमेशा कर सकता है, चाहे परिस्थिति या व्यक्ति की शुद्धता की स्थिति कुछ भी हो। ऋषि पुष्टि करते हैं कि भगवान भक्त की शुद्धता या अशुद्धता से दूषित नहीं होते। इसके विपरीत, भगवान भक्त को शुद्ध करते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं, जो उनकी परम पवित्रता को दर्शाता है।
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