वने रणे शत्रुजलाग्निमध्ये महार्णवे पर्वतमस्तके वा |
सुप्तं प्रमत्तं विषमस्थितं वा रक्षन्ति पुण्यानि पुरा कृतानि ||
वन में, युद्ध में, शत्रुओं के बीच, जल के बीच, आग के बीच, समुद्र में गिरे हुए को, पहाड के शिखर पर खडे को, सोये हुए को, नशे में धुत को या किसी भी प्रकार की आपदा के समय पहले किये हुए पुण्य ही हमारी रक्षा करती है |
नैमिषारण्य गोमती नदी के बाएं तट पर है ।
ॐ जूँ सः - यह महामृत्युंजय मंत्र का बीज मंत्र है।