भगवान श्री राम जी, विष्णु के सातवें अवतार, अपनी दिव्य गुणों के लिए पूजनीय हैं। उनके जन्म के समय का ग्रह संयोजन उल्लेखनीय है। महर्षि वाल्मीकि की रामायण इस खगोलीय घटना का विवरण देती है, जो श्री राम जी के जीवन और शासन पर शक्तिशाली ग्रहों के प्रभाव को उजागर करती है। यह लेख वाल्मीकि रामायण का श्लोक और उनके जन्म के समय ग्रहों की उच्च स्थिति के आधार पर भगवान श्री राम जी की कुंडली की खोज करता है।
वाल्मीकि रामायण (1.18.8-9) के अनुसार:
ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट् समत्ययु:। ततश्च द्वादशे मासे चेत्रे नावमिके तिथौ॥
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥
ज्योतिषीय साक्ष्य और विद्वानों के व्याख्यानों के अनुसार, भगवान श्री राम जी के जन्म के समय निम्नलिखित ग्रह उच्च स्थिति में थे:
प्रभाव: नेतृत्व, अधिकार, और धर्मनिष्ठा।
जीवन में प्रतिबिंब: श्री राम जी एक अद्वितीय राजा थे जिन्होंने न्याय और निष्पक्षता के साथ शासन किया। उनके नेतृत्व गुण अद्वितीय थे, और उन्हें उनके प्रजा और साथियों द्वारा गहराई से सम्मानित किया जाता था। उनका कर्तव्य और धर्म के प्रति समर्पण गहरा था।
प्रभाव: साहस, शक्ति, और दृढ़ संकल्प।
जीवन में प्रतिबिंब: श्री राम जी ने रावण के खिलाफ युद्ध में अद्वितीय वीरता और सैन्य कौशल का प्रदर्शन किया। उनके 14 साल के वनवास और सीता की खोज में उनके कर्तव्यों को पूरा करने में उनकी दृढ़ता ने उनके अडिग आत्मा को प्रदर्शित किया।
प्रभाव: ज्ञान, आध्यात्मिकता, और परोपकार।
जीवन में प्रतिबिंब: श्री राम जी अपने वेदों और शास्त्रों के ज्ञान के लिए जाने जाते थे। उनके गहरे आध्यात्मिक झुकाव और नैतिक सिद्धांत उनके कार्यों और निर्णयों का मार्गदर्शन करते थे। वह सभी प्राणियों के प्रति अपनी उदारता और दया के लिए भी जाने जाते थे।
प्रभाव: सामंजस्य, प्रेम, और करुणा।
जीवन में प्रतिबिंब: भगवान श्री राम जी के रिश्ते प्रेम और समर्पण से भरे थे, विशेषकर अपनी पत्नी सीता के प्रति। उनकी करुणा और अपने प्रजा के बीच सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता उल्लेखनीय थी। वह कला और संस्कृति के संरक्षक भी थे, अपने राज्य में सुंदरता और परिष्कार का वातावरण बनाए रखते थे।
प्रभाव: अनुशासन, न्याय, और धैर्य।
जीवन में प्रतिबिंब: भगवान श्री राम जी ने अनुशासन और न्याय की मजबूत भावना का उदाहरण प्रस्तुत किया। अपने कर्तव्य और धर्म के प्रति उनकी अडिग प्रतिबद्धता ने उनके जीवन की कठिनाइयों, जैसे वनवास और परीक्षणों, के दौरान उनकी सहनशीलता को प्रदर्शित किया। उनके शासन को श्री राम जी राज्य के रूप में जाना जाता था, जो सभी के लिए निष्पक्षता और समान न्याय से चिह्नित था।
श्री राम जी की कुंडली, पाँच उच्च ग्रहों के साथ, एक अद्वितीय संरेखण का संकेत देती है जिसने उनके दिव्य व्यक्तित्व में योगदान दिया। प्रत्येक ग्रह का प्रभाव उनके चरित्र और जीवन के विभिन्न पहलुओं को आकार देने में मदद करता है, जिससे वह सामंजस्यपूर्ण और संतुलित व्यक्तित्व बने जिसके लिए उन्हें मनाया जाता है। भगवान श्री राम जी की कुंडली उनके अनुकरणीय गुणों और मानव भाग्य पर खगोलीय शक्तियों के गहरे प्रभाव का प्रमाण है।
स्नान करते समय बोलनेवाले के तेज को वरुणदेव हरण कर लेते हैं। हवन करते समय बोलनेवाले की संपत्ति को अग्निदेव हरण कर लेते हैं। भोजन करते समय बोलनेवाले की आयु को यमदेव हरण कर लेते हैं।
श्री राम की कहानी लिखने के लिए ब्रह्मा से प्रेरित होकर महर्षि वाल्मिकी अपने शिष्य भारद्वाज के साथ स्नान और दोपहर के अनुष्ठान के लिए तमसा नदी के तट पर गए। वहां उन्होंने क्रौंच पक्षी का एक जोड़ा आनंदपूर्वक विचरते हुए देखा। उसी समय नर क्रौंच पक्षी को एक शिकारी ने मार डाला। रक्त से लथपथ मृत पक्षी को भूमि पर देखकर मादा क्रौंचा दुःख से चिल्ला उठी। उसकी करुण पुकार सुनकर ऋषि का करुणामय हृदय अत्यंत द्रवित हो गया। वही दु:ख करुणा से भरे श्लोक में बदल गया और जगत के कल्याण के लिए महर्षि वाल्मिकी के मुख से निकला - मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधी काममोहितम् ।। श्लोक का सामान्य अर्थ शिकारी को श्राप है - 'हे शिकारी, तुम अनंत वर्षों तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर पाओ, क्योंकि तुमने क्रौंच पक्षियों के जोड़े में से कामभावना से ग्रस्त एक का वध कर डाला ।।' लेकिन वास्तविक अर्थ यह है- ' हे लक्ष्मीपति राम, आपने रावण-मंदोदरी जोड़ी में से एक, विश्व-विनाशक रावण को मार डाला है, और इस प्रकार, आप अनंत काल तक पूजनीय रहेंगे।'
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