इस शरीर के माध्यम से जीव अपने पुण्य और पाप कर्मों के फलस्वरूप सुख-दुख का अनुभव करता है। इसी शरीर से पापी यमराज के मार्ग पर कष्ट सहते हुए उनके पास पहुँचते हैं, जबकि धर्मात्मा प्रसन्नतापूर्वक धर्मराज के पास जाते हैं। विशेष रूप से, केवल मनुष्य ही मृत्यु के बाद एक सूक्ष्म आतिवाहिक शरीर धारण करता है, जिसे यमदूत यमराज के पास ले जाते हैं। अन्य जीव-जंतु, जैसे पशु-पक्षी, ऐसा शरीर नहीं पाते। वे सीधे दूसरी योनि में जन्म लेते हैं। ये प्राणी मृत्यु के बाद वायु रूप में विचरण करते हुए किसी विशेष योनि में जन्म लेने के लिए गर्भ में प्रवेश करते हैं। केवल मनुष्य को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल इस लोक और परलोक दोनों में भोगना पड़ता है।
यजुर्वेद का पवित्र आदेश है कि यह चराचरात्मक सृष्टि परमेश्वर से व्याप्य है, जो सर्वाधार, सर्वनियन्ता, सर्वाधिपति, सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, और सभी गुणों तथा कल्याण का स्वरूप हैं। इसे समझते हुए, परमेश्वर को सदा अपने साथ रखें, उनका निरंतर स्मरण करें, और इस जगत में त्यागभाव से केवल आत्मरक्षार्थ कर्म करें तथा इन कर्मों द्वारा विश्वरूप ईश्वर की पूजा करें। अपने मन को सांसारिक मामलों में न उलझने दें; यही आपके कल्याण का मार्ग है। वस्तुतः ये भोग्य पदार्थ किसी के नहीं हैं। अज्ञानवश ही मनुष्य इनमें ममता और आसक्ति करता है। ये सब परमेश्वर के हैं और उन्हीं के लिए इनका उपयोग होना चाहिए। परमेश्वर को समर्पित पदार्थों का उपभोग करें और दूसरों की संपत्ति की आकांक्षा न करें।
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