मनुस्मृति (४।६२) में कहा गया है:
ब्राह्मे मुहूर्ते बुध्येत धर्मार्थौ चानुचिन्तयेत् ।
कायक्लेशांश्च तन्मूलान्वेदतत्त्वार्थं एव च॥
अर्थात्, ब्रह्म मुहूर्त में उठकर धर्म, अर्थ का चिंतन करें, शरीर की क्लांति का निदान करें, और वेदांत का स्मरण करें। शास्त्र में इसे जागने का उचित समय माना गया है। ब्राह्ममुहूर्त रात्रि के पिछले पहर का तीसरा मुहूर्त होता है, जिसे जागरण के लिए सबसे सही माना गया है।
शांत और सात्विक वातावरण
प्रातःकाल का समय अत्यंत शांत और सात्विक होता है। यह समय जीवनशक्ति से परिपूर्ण होता है, जब सारी प्रकृति की गतिविधियाँ ठहराव पर होती हैं। रात्रि के तमोगुण से उत्पन्न जड़ता मिट जाती है, और सतोगुणमयी चेतना का संचार होता है। यह समय आत्म-शांति और ताजगी का अनुभव कराने के लिए आदर्श है।
स्वास्थ्यप्रद और शक्ति प्रदायिनी हवा
इस समय हवा शुद्ध और ऑक्सीजन से भरपूर होती है। शुद्ध वायु में सुबह की सैर करने से दिन भर की ताजगी और स्फूर्ति बनी रहती है। लोग बाग-बगीचों में टहलते हैं और प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद लेते हैं, जिससे मन प्रसन्न रहता है।
अमृतमय प्रभाव
ब्राह्म मुहूर्त में चंद्रकिरणों और नक्षत्रों का प्रभाव रहता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है। यह समय "अमृत बेला" के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस समय वातावरण में अमृतमय प्रभाव होता है जो हमारे स्वास्थ्य को संवारता है।
दिन की अच्छी शुरुआत
प्रातः जागरण से शरीर में स्फूर्ति आती है और मन प्रसन्न रहता है। आलस्य दूर होकर दिन भर ताजगी बनी रहती है। इस समय जागने से हम अपने दैनिक कार्यों को समय पर पूरा कर सकते हैं और पूजा-पाठ भी अच्छी तरह से संपन्न हो जाती है, जिससे हमें कर्मक्षेत्र में सफलता मिलती है।
आयुर्वेद भी इस समय की महत्ता को स्वीकार करता है:
वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यं आयुश्च विंदति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रत् श्रियं वा पंकजं यथा॥
अर्थात, ब्राह्म मुहूर्त में जागने से व्यक्ति को सौंदर्य, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, स्वास्थ्य और आयु की प्राप्ति होती है। यह समय प्राकृतिक ऊर्जा और ताजगी से परिपूर्ण होता है।
ऋग्वेद (५४४।१४) में भी उल्लेख है:
यो जागार तमृचः कामयन्ते यो जागार तमु सामानि यन्ति।
यो जागार तमयं सोम आह तवाहमस्मि सख्ये न्योकाः ॥१४॥
अर्थात, जो व्यक्ति प्रातःकाल जागता है, उसे ऋचाएं और स्तुतियां प्राप्त होती हैं। भगवान उससे मित्रता में स्थिर रहते हैं।
प्रातः जागरण एक दिव्य अनुभव है जो हमें मानसिक शांति, शारीरिक ताजगी और आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। यह समय दिन की एक नई शुरुआत के लिए आदर्श है, जिससे जीवन में अनुशासन, ऊर्जा, और सकारात्मकता आती है।
गायत्री मंत्र का अर्थ - हम श्रेष्ठतम सूर्य भगवान पर ध्यान करते हैं। वे हमारी बुद्धि को प्रकाशित करें।
अनाहत चक्र में बारह पंखुडियां हैं। इनमें ककार से ठकार तक के वर्ण लिखे रहते हैं। यह चक्र अधोमुख है। इसका रंग नीला या सफेद दोनों ही बताये गये है। इसके मध्य में एक षट्कोण है। अनाहत का तत्त्व वायु और बीज मंत्र यं है। इसका वाहन है हिरण। अनाहत में व्याप्त तेज को बाणलिंग कहते हैं।