गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ॥

 

कोई भी गुण, अच्छे लोगों के पास पहुंचकर अच्छे गुण बनते हैं और वे ही गुण बुरे लोगों पास जाकर दोष बन जाते हैं । जिस प्रकार से एक ही पानी नदियों में मिलकर मीठा और पीने योग्य बन जाता है और वह ही पानी समंदर में मिलकर नमकीन और पीने के लिए अयोग्य बन जाता है, वैसे ही गुण भी सही और गलत मनुष्यों से ही अच्छे और बुरे बन जाते हैं ।

 

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सरल अनुवाद के लिए धन्यवाद ! -विकास कुमार चौरसिया

यह वेबसाइट बहुत ही उपयोगी और ज्ञानवर्धक है।🌹 -साक्षी कश्यप

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