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स्त्रियों के वस्त्रों पर आधारित शुभ और अशुभ संकेत

किसी महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय, यदि आपको काले वस्त्र पहने एक क्रोधित स्त्री दिखाई देती है, तो यह विफलता का संकेत है। यदि आपको सफेद वस्त्र पहने एक प्रसन्न स्त्री दिखाई देती है, तो यह सफलता का संकेत है।

भगवान ने संसार क्यों बनाया?

उपनिषद कहते हैं - एकाकी न रमते स द्वितीयमैच्छत्। एकोऽयं बहु स्यां प्रजायेय। ईश्वर अकेले थे और उनको लगा की अकेले रहना संतुष्टिदायक नहीं है। इसलिए, उन्होंने संगती की कामना की और लोक बनाने का फैसला किया। ऐसा करने के लिए, उन्होंने स्वयं को बढ़ाया और हमारे चारों ओर सब कुछ बन गया। सृष्टि का यह कार्य विविधता और जीवन को अस्तित्व में लाने का ईश्वर का तरीका था। यह व्याख्या हमें याद दिलाती है कि संसार और इसमें विद्यमान हर वस्तु ईश्वर के आनंद की इच्छा की अभिव्यक्ति है। यह सभी प्राणियों की एकता का भी प्रतीक है, क्योंकि हम सभी एक ही दिव्य स्रोत से आए हैं।

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इनमें से कौन सा स्थान सरस्वती नदी का उद्गम स्थल माना जाता है ?

ॐ नमो भगवते रौद्ररूपाय पिङ्गललोचनाय वज्रनखाय वज्रदंष्ट्रकरालवदनाय गार्ह्यसाहवनीयदक्षिणाग्न्यन्तककरालवक्त्राय ब्रह्मराक्षससंहरणाय प्रह्लादरक्षकस्तम्भोद्भवाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हन हन दह दह घें घें घे�....

ॐ नमो भगवते रौद्ररूपाय पिङ्गललोचनाय वज्रनखाय वज्रदंष्ट्रकरालवदनाय गार्ह्यसाहवनीयदक्षिणाग्न्यन्तककरालवक्त्राय ब्रह्मराक्षससंहरणाय प्रह्लादरक्षकस्तम्भोद्भवाय ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः हन हन दह दह घें घें घें वज्रनृसिंहाय आत्मरक्षकाय आत्ममन्त्र-आत्मयन्त्र-आत्मतन्त्ररक्षणाय ॐ हां लं लं लं श्रीवीरप्रलयकालनृसिंहाय राजभयचोरभयं दुष्टभयं सकलभयम् उच्चाटनाय ॐ क्लां क्लीं क्लूं क्लैं क्लौं क्लः वज्रदंष्ट्राय सर्वशत्रून् ब्रह्मग्रहान् पिशाचग्रहान् शाकिनीग्रहान् डाकिनीग्रहान् मारय मारय कीलय कीलय छेदय छेदय यत्मलं चूरय लपमलं चूरय शवमलं चूरय सर्वमलं चूरय अवमलं चूरय ॐ क्लां क्लीं क्लूं क्लैं क्लौं क्लः लं लं लं श्रीवीरनृसिंहाय इन्द्रदिशं बन्ध बन्ध वज्रनखाय अग्निदिशं बन्ध बन्ध ज्वालावक्त्राय यमदिशं बन्ध बन्ध करालदंष्ट्राय नैर्ऋतोदिशं बन्ध बन्ध पिङ्गलाक्षाय वरुणदिशं बन्ध बन्ध ऊर्ध्वनखाय वायव्यदिशं बन्ध बन्ध नीलकण्ठाय कुबेरदिशं बन्ध बन्ध ज्वलत्केशाय ईशानीं दिशं बन्ध बन्ध ऊर्ध्वबाहवे ऊर्ध्वदिशं बन्ध बन्ध आधाररूपाय पातालदिशं बन्ध बन्ध कनकश्यपसंहरणाय आकाशदिशं बन्ध बन्ध उग्रदेहाय अन्तरिक्षदिशं बन्ध बन्ध भक्तजनपालकाय स्तम्भोद्भवाय सर्वदिशः बन्ध बन्ध घां घां घां घीं घीं घीं घूं घूं घूं घैं घैं घैं घौं घौं घौं घः घः घः शाकिनीग्रहं डाकिनीग्रहं ब्रह्मराक्षसग्रहं सर्वग्रहान् बालग्रहं भूतग्रहं प्रेतग्रहं पिशाचग्रहम् ईरकोटयोगग्रहं वैरिग्रहं कालपापग्रहं मध्यवीरग्रहं कूष्माण्डग्रहं मलभक्षकग्रहं रक्तदुर्गग्रहं श्मशानदुर्गग्रहं कामिनीग्रहं मोहिनीग्रहं छेदिग्रहं छिन्दिग्रहं क्षेत्रग्रहं मूकग्रहं ज्वरग्रहं सर्वग्रहम् ईश्वरदेवताग्रहं कालभैरवग्रहं वीरभद्रग्रहम् अग्निदिग्यमदिग्ग्रहं सर्वदुष्टग्रहान् नाशय नाशय नाशय भूतप्रेतपिशाचग्रहान् नाशय नाशय नाशय ब्रह्मराक्षसग्रहान् छेदय छेदय छेदय सर्वग्रहान् निर्मूलय निर्मूलय निर्मूलय ॐ नमो भगवते वीरनृसिंहाय वीरदेवतायै ग्रहं करालग्रहं दुष्टदेवताग्रहम् उग्रग्रहं कालभैरवग्रहं रणग्रहं दुर्गग्रहं प्रलयकालग्रहं महाकालग्रहं योगग्रहं भेदग्रहं शङ्खिनीग्रहं महाबाहुग्रहम् इन्द्रादिदेवताग्रहं खण्डय खण्डय खण्डय ॐ नमो भगवते करालदंष्ट्राय किन्नरकिंपुरुषगरुडगन्धर्वविद्याधरान् दिशोग्रहान् स्तम्भय स्तम्भय स्तम्भय गदाधराय शङ्खचक्रशार्ङ्गधराय आत्मसंरक्षणाय छेदिन् अनन्तकण्ठ हिरण्यकशिपुसंहरणाय प्रह्लादवरप्रदाय देवताप्रतिपालकाय रुद्रसखाय रुद्रमुखाय स्तम्भोद्भवाय नारसिंहाय ज्वालादाहकाय महाबलाय श्रीलक्ष्मीनृसिंहाय योगावताराय योगपावनाय परान् छेदय छेदय छेदय भार्गवक्षेत्रपीठ भोगानन्द सर्वजनग्रथित ब्रह्मरुद्रादिपूजितवज्रनखाय ऋग्यजुःसामाथर्वणवेदप्रतिपालनाय ऋषिजनवन्दिताय दयाम्बुधे लं लं लं श्रीनृसिंहाय घें घें घें कुरु कुरु कुरु क्षं क्षं क्षं मां रक्ष रक्ष रक्ष हुं हुं फट् स्वाहा ।

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