मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णाः
त्रिभुवनमुपकारश्रेणिभिः प्रीणयन्तः |
परगुणपरमाणून् पर्वतीकृत्य नित्यं
निजहृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः ||

 

मन में, वाणी में और शरीर में पुण्य रूपी अमृत से भरे हुए, तीनों लोक में उपकार कर के उस की प्रसन्नता को बढाते हुए, दूसरों के छोटे छोटे गुण को भी पर्वत के समान बडा गुण मानते हुए, अपने मन में प्रसन्न होते हुए सज्जन इस जगत में कितने हैं ? वे तो अतीव दुर्लभ होते हैं |

 

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आपको नमस्कार 🙏 -राजेंद्र मोदी

गुरुजी की शिक्षाओं में सरलता हैं 🌸 -Ratan Kumar

Om namo Bhagwate Vasudevay Om -Alka Singh

वेदधारा ने मेरी सोच बदल दी है। 🙏 -दीपज्योति नागपाल

वेदधारा चैनल पर जितना ज्ञान का भण्डार है उतना गुगल पर सर्च करने पर सटीक जानकारी प्राप्त नहीं हो सकती है। बहुत ही सराहनीय कदम है -प्रमोद कुमार

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