पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो वसन्तस्य किं
नोलूकोप्यवलोकते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम् |
धारा नैव पतन्ति चातकमुखे मेघस्य किं दूषणं
यत्पूर्वं विधिना ललाटलिखितं तन्मार्जितुं कः क्षमः ||

 

बांस में पत्ता नही उगता तो इस में वसंत ऋतु का क्या दोष? उल्लू दिन में देख नहीं सकता तो इस में सूरज का क्या दोष? चातक पक्षी के मुह में पानी नहीं गिरती तो इस में मेघ का क्या दोष? विधि ने जो पहले माथे पर लिख दिया है तो उसे कौन मिटा पाएगा? इसलिए जो मिला है उसी में खुश रहना सीखें |

 

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वेद धारा समाज के लिए एक महान सीख औऱ मार्गदर्शन है -Manjulata srivastava

वेद पाठशालाओं और गौशालाओं के लिए आप जो अच्छा काम कर रहे हैं, उसे देखकर बहुत खुशी हुई 🙏🙏🙏 -विजय मिश्रा

वेदधारा की धर्मार्थ गतिविधियों का हिस्सा बनकर खुश हूं 😇😇😇 -प्रगति जैन

जो लोग पूजा कर रहे हैं, वे सच में पवित्र परंपराओं के प्रति समर्पित हैं। 🌿🙏 -अखिलेश शर्मा

सनातन धर्म के भविष्य के लिए वेदधारा के नेक कार्य से जुड़कर खुशी महसूस हो रही है -शशांक सिंह

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