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देवकार्य से पूर्व पितरों को तृप्त करें

देवकार्यादपि सदा पितृकार्यं विशिष्यते । देवताभ्यो हि पूर्वं पितॄणामाप्यायनं वरम्॥ (हेमाद्रिमें वायु तथा ब्रह्मवैवर्तका वचन) - देवकार्य की अपेक्षा पितृकार्य की विशेषता मानी गयी है। अतः देवकार्य से पूर्व पितरों को तृप्त करना चाहिये।

महाभारत के अनुसार गांधारी को सौ पुत्र कैसे प्राप्त हुए?

गांधारी ने ऋषि व्यास जी से सौ शक्तिशाली पुत्रों का वरदान मांगा। व्यास जी के आशीर्वाद से वह गर्भवती हो गई, लेकिन उसे लंबे समय तक गर्भधारण का सामना करना पड़ा। जब कुंती के पुत्र का जन्म हुआ तो गांधारी को निराशा हुई और उसने अपने पेट पर प्रहार किया। उसके पेट से मांस का एक लोथड़ा निकला। व्यास जी फिर आए, कुछ अनुष्ठान किए और एक अनोखी प्रक्रिया के माध्यम से उस गांठ को सौ बेटों और एक बेटी में बदल दिया। यह कहानी प्रतीकवाद से समृद्ध है, जो धैर्य, हताशा और दैवीय हस्तक्षेप की शक्ति के विषयों पर प्रकाश डालती है। यह मानवीय कार्यों और दैवीय इच्छा के बीच परस्पर क्रिया को दर्शाता है।

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भगवान शिव एक अनादि और अनंत अग्नि स्तंभ बनकर कहां प्रकट हुए थे ?

ॐ श्रीं गं सौम्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा....

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