मूलं भुजङ्गैः शिखरं विहङ्गैः शाखाः प्लवङ्गैः कुसुमानि भृङ्गैः |
आश्चर्यमेतत् खलु चन्दनस्य परोपकाराय सतां विभूतयः ||
चंदन का वृक्ष अपने मूल में सांप को, अपने शिखर में पक्षियों को, अपनी शाखाओं में बंदरों को और अपने फूलों में भ्रमरों को आश्रय देता है | ऐसे ही होते हैं सज्जन जो मनुष्य, मृग, पक्षी इत्यादि सभी जीव जन्तुओं का उपकार कर के उन सब को आश्रय देते हैं |
मन्त्रार्थं मन्त्रचैतन्यं यो न जानाति साधकः । शतलक्षप्रजप्तोऽपि तस्य मन्त्रो न सिध्यति - जो व्यक्ति मंत्र का अर्थ और सार नहीं जानता, वह इसे एक अरब बार जपने पर भी सफल नहीं होगा। मंत्र के अर्थ को समझना महत्वपूर्ण है। मंत्र के सार को जानना आवश्यक है। इस ज्ञान के बिना, केवल जप करने से कुछ नहीं होगा। बार-बार जपने पर भी परिणाम नहीं मिलेंगे। सफलता के लिए समझ और जागरूकता आवश्यक है।
ॐ विष्णु चक्र चक्रौति भार्गवन्ति, सैहस्त्रबाहु चक्रं चक्रं चक्रौती युद्धं नाष्यटष्य नाष्टष्य चल चक्र, चक्रयामि चक्रयामि. काल चक्रं भारं उन्नतै करियन्ति करियन्ति भास्यामि भास्यामि अड़तालिशियं भुजगेन्द्र हारं सुदर्शन चक्रं चलायामि चलायामि भुजा काष्टं फिरयामि फिरयामि भूर्व : भूवः स्वः जमुष्ठे जमुष्ठे चलयामि रुद्र ब्रह्म अंगुलानि ब्रासमति ब्रासमति करियन्ति यमामी यमामी ।
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