अरब सागर में।
पूषा रेवत्यन्वेति पन्थाम्। पुष्टिपती पशुपा वाजवस्त्यौ। इमानि हव्या प्रयता जुषाणा। सुगैर्नो यानैरुपयातां यज्ञम्। क्षुद्रान्पशून्रक्षतु रेवती नः। गावो नो अश्वां अन्वेतु पूषा। अन्नं रक्षन्तौ बहुधा विरूपम्। वाजं सनुतां यजमानाय यज्ञम्। (तै.ब्रा.३.१.२)
परोऽपि हितवान् बन्धु:
अगर कोई पराया होकर भी हमारा भला चाहता है तो वह अपना है| अगर ....
Click here to know more..सारे भक्तों को भगवान ने अमीर क्यों नहीं बनाया?
द्वादश ज्योतिर्लिंग भुजंग स्तोत्र
सुशान्तं नितान्तं गुणातीतरूपं शरण्यं प्रभुं सर्वलोकाध�....
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