गुणेषु क्रियतां यत्नः किमाटोपैः प्रयोजनम् |
विक्रीयन्ते न घण्टाभिर्गावः क्षीरविवर्जिताः ||
अगर प्रयास करना हो तो अपने अंदर विद्यमान अच्छे गुणों को बढाने का प्रयास कीजिए | बाकी के आडम्बरों से कोई प्रयोजन नहीं मिलने वाला | जो गाय दूध न देती हो उसके गले पर मणि बांधने से कोई उसे खरीद नहीं लेगा | इसी प्रकार बिन गुणों के दर्प करने वालों को कोई सम्मान नहीं देगा |
धर्म के सिद्धांत सीधे सर्वोच्च भगवान द्वारा स्थापित किए जाते हैं। ये सिद्धांत ऋषियों, सिद्धों, असुरों, मनुष्यों, विद्याधरों या चारणों द्वारा पूरी तरह से समझ में नहीं आते हैं। दिव्य ज्ञान मानवीय समझ से परे है और यहां तक कि देवताओं की भी समझ से परे है।
संध्या देवी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री थी। संध्या के सौन्दर्य को देखकर ब्रह्मा को स्वयं उसके ऊपर कामवासना आयी। संध्या के मन में भी कामवासना आ गई। इस पर उन्होंने शर्मिंदगी महसूस हुई। संध्या ने तपस्या करके ऐसा नियम लाया कि बच्चों में पैदा होते ही कामवासना न आयें, उचित समय पर ही आयें। संध्या देवी का पुनर्जन्म है वशिष्ठ महर्षि की पत्नी अरुंधति।