घर में 2 शिवलिंग, 3 गणेश मूर्तियाँ, 2 सूर्य मूर्तियाँ, 3 दुर्गा मूर्तियाँ, 2 शंख, 2 शालग्राम और 2 गोमती चक्रों की पूजा नहीं करनी चाहिए। इससे अशांति हो सकती है।
शिव संहिता के अनुसार अनाहत चक्र को जागृत करने से साधक को अपूर्व ज्ञान उत्पन्न होता है, अप्सराएं तक उस पर मोहित हो जाती हैं, त्रिकालदर्शी बन जाता है, बहुत दूर का शब्द भी सुनाई देता है, बहुत दूर की सूक्ष्म वस्तु भी दिखाई देती है, आकाश से जाने की क्षमता मिलती है, योगिनी और देवता दिखाई देते हैं, खेचरी और भूचरी मुद्राएं सिद्ध हो जाती हैं। उसे अमरत्व प्राप्त होता है। ये हैं अनाहत चक्र जागरण के लाभ और लक्षण।
हम जानते हैं कि यमराज, वायुदेव, इंद्र्देव और अश्विनी कुमार पांडवों के रूप में अवतार लिये। कुन्ती और माद्री के पुत्र के रूप में। पर क्यों? आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया? क्या जरूरत थी? क्या सिर्फ इसलिए कि कुंती और माद्री ....
हम जानते हैं कि यमराज, वायुदेव, इंद्र्देव और अश्विनी कुमार पांडवों के रूप में अवतार लिये।
कुन्ती और माद्री के पुत्र के रूप में।
पर क्यों?
आखिर उन्होंने ऐसा क्यों किया?
क्या जरूरत थी?
क्या सिर्फ इसलिए कि कुंती और माद्री ने उनका आह्वान किया और वे अवतार लेने के लिए विवश हो गये?
नहीं।
इसके पीछे एक वजह थी।
ब्रह्मा जी ने पहले ही इन्हें निर्देश दिया था कि आप लोग धरती पर जन्म लीजिए।
भूमि देवि ने ब्रह्मा जी के पास जाकर शिकायत की थी कि धरती पर पाप बहुत बढ चुका है, मैं इस भार का वहन नहीं कर पा रही हूं।
हर तरफ दुष्ट, पाखंड, और छली भरे पडे हैं।
केवल मनुष्यों में ही नहीं।
पशु, पक्षी हर प्राणी में क्रूरता आ चुकी है।
वेद और वैदिक अनुष्ठान सब नष्ट हो चुके हैं।
शासक क्रूर और अहंकारी बन गये हैं।
भूमि देवी ने क्यों कहा कि वह भार का वहन नहीं कर पा रही थी?
वजन के कारण नहीं।
असंतुलन के कारण।
आपने देखा होगा लोगों को सिर पर भर वहन करते हुए।
यदि भार ठीक से संतुलित नहीं है, अगर एक तरफ भारी है, अगर एक तरफ झुक रहा है, तो वह गिर जाएगा।
धर्म और अधर्म के बीच असंतुलन के कारण भूमि देवी को परेशानी हुई।
अधर्म हमेशा रहेगा, लेकिन फिर उसका धर्म के साथ संतुलन बनाए रखना होगा।
यहां स्थिति यह थी कि अधर्म, बुराई सहनीय स्तर से बहुत अधिक बढ़ गई है।
भार एक तरफ झुक रहा है।
इसलिए उसे संतुलन बनाए रखने में मदद की जरूरत है।
इसलिए भूमि देवि ब्रह्मा जी के पास गई।
ब्रह्मा जी ने सभी देवताओं, गंधर्वों, अप्सराओं को निर्देश दिया।
आप लोग सब जाओ और धरती पर जन्म लो।
पूरी तरह नहीं।
उनके कुछ अंश।
इसे अंशवतरण कहते हैं।
केवल एक हिस्सा।
जब इंद्र ने अर्जुन के रूप में अवतार लिया तो इसका मतलब यह नहीं है कि वे उस समय स्वर्ग में नहीं थे।
केवल इन्द्र का एक छोटा सा भाग ही कुन्ती के गर्भ में प्रविष्ट हुआ और अर्जुन के रूप में उत्पन्न हुआ।
लेकिन फिर बुराई का बोझ इतना कैसे बढ़ गया?
एक और सवाल उठता है।
यदि परशुराम ने सम्पूर्ण क्षत्रिय वंश का विनाश कर दिया था तो अब महाभारत के समय क्षत्रिय कैसे आ गए।
परशुराम ने केवल क्षत्रिय पुरुषों वध किया था।
क्षत्रिय स्त्रियों का नहीं।
क्षत्रिय स्त्रियों ने ब्राह्मणों से गर्भ धारण किया और क्षत्रिय वंश को पुनर्जीवित किया।
कुछ समय के लिए सब कुछ अच्छा था।
तब क्या हुआ; असुरों को देवताओं ने परास्त कर दिया।
स्वर्गा पूरी तरह से देवों के नियंत्रण में आ गया था।
तब असुरों ने पृथ्वी पर जन्म लेना शुरू कर दिया, सैकड़ों हजारों में।
केवल मनुष्य ही नहीं, पशु - पक्षी के रूप में भी।
पृथ्वी पर जन्म लेने का उद्देश्य अच्छे कर्म करना और स्वर्ग प्राप्त करना था।
लेकिन उनके मूल स्वभाव ने उन्हें कोई अच्छा कर्म करने ही नहीं दिया।
वे सब चारों ओर बुराई ही बुराई बिखेरते रहे।
वे क्रूर थे और सभी को परेशान करते थे।
वे लालची थे।
उनमें सहिष्णुता नहीं थी।
कई असुरों ने क्षत्रिय वंशों में जन्म लिया और वे क्रूर और दुष्ट शासक बन गए।
तो ये थी स्तिति।
उनका विनआश करके धर्म और अधर्म का फिर से संतुलन करना है।
लेकिन उनका नेतृत्व कौन करेगा?
देवगण शक्तिशाली हैं।
लेकिन वे धरती के तरीके और साधन नहीं जानते।
उन्हें एक नेता की जरूरत थी।
इसलिए देवगण वैकुण्ठ चले गए।
भगवन ने कहा: हाँ, मैं तुम्हारे साथ आता हूं।
भूमि देवि को बचाने।
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