मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत् ।
आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः ।।
दूसरों की स्त्री को जो अपनी माता के समान समझता हो, दूसरों के वस्तुओं को जो मिट्टी के समान समझता हो और दूसरे जन व पशु पक्षि आदि को अपने समान समझता हो वह ही पंडित कहलाता है ।
दुर्दम विश्वावसु नामक गंधर्व का पुत्र था। एक बार वे अपनी हजारों पत्नियों के साथ कैलास के निकट एक झील में विहार कर रहे थे। वहाँ तप कर रहे ऋषि वसिष्ठ ने क्रोधित होकर उन्हें श्राप दे दिया। परिणामस्वरूप, वह राक्षस बन गया। उनकी पत्नियों ने वशिष्ठ से दया की याचना की। वसिष्ठ ने कहा कि भगवान विष्णु की कृपा से 17 वर्ष बाद दुर्दामा पुनः गंधर्व बन जाएगा। बाद में, जब दुर्दामा गालव मुनि को निगलने की कोशिश कर रहा था, तो भगवान विष्णु ने उसका सिर काट दिया और वह अपने मूल रूप में वापस आ गया। कहानी का सार यह है कि कार्यों के परिणाम होते हैं, लेकिन करुणा और दैवीय कृपा से मुक्ति संभव है।
व्यासजी ने १८ पर्वात्मक एक पुराणसंहिता की रचना की। इसको लोमहर्षण और उग्रश्रवा ने ब्रह्म पुराण इत्यादि १८ पुराणों में विभजन किया।