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वेदधारा की वजह से मेरे जीवन में भारी परिवर्तन और सकारात्मकता आई है। दिल से धन्यवाद! 🙏🏻 -Tanay Bhattacharya

वेदधारा के माध्यम से मिले सकारात्मकता और विकास के लिए आभारी हूँ। -Varsha Choudhry

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अच्छे उद्देश्य के लिए असत्य बोलना

किसी निर्दोष की जान बचाने, विवाह के दौरान, पारिवारिक सम्मान की रक्षा के लिए, या विनोदी चिढ़ाने जैसी स्थितियों में, असत्य बोलना गलत नहीं माना जाता है। ऐसे झूठ से धर्म नहीं टूटता. धर्म की रक्षा जैसे अच्छे उद्देश्य के लिए असत्य बोलना पाप नहीं है।

क्या गाय का दूध पीना पाप है?

नहीं। क्यों कि गाय अपने बछडे को जितना चाहिए उससे कई गुना दूध उत्पन्न करती है। गाये के दूध के तीन हिस्से होते हैं - वत्सभाग, देवभाग और मनुष्यभाग। वत्सभाग अपने बछडे के लिए, देवभाग पूजादियों में उपयोग के लिए और मनुष्यभाग मानवों के उपयोग के लिए।

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उत्तर प्रदेश में शृंगी ऋषि के मंदिर किस इलाके में स्थित हैं ?

अंशावतरण पर्व का इकसठवां अध्याय जो महाभारत के आदि पर्व का हिस्सा है, कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए प्रेरित करने वाली हर चीज का संक्षिप्त विवरण देता है। वैशम्पायन जनमेजय और अन्य सभी को सर्प यज्ञ के स्थान पर पांडवों और कौरवों के ब�....

अंशावतरण पर्व का इकसठवां अध्याय जो महाभारत के आदि पर्व का हिस्सा है, कुरुक्षेत्र युद्ध के लिए प्रेरित करने वाली हर चीज का संक्षिप्त विवरण देता है।

वैशम्पायन जनमेजय और अन्य सभी को सर्प यज्ञ के स्थान पर पांडवों और कौरवों के बीच विवाद का कारण बता रहे हैं।

अपने पिता पांडु के निधन के बाद, पांडव जंगल से महल लौट आए और वहीं रहने लगे।
उन्होंने वेद और धनुर्वे्द अध्ययन किया।
दोनों में समर्थ बने।

पांडव अपने ज्ञान, साहस और सदाचार के कारण शीघ्र ही जनता के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए।
वे धन के मामले में भी आगे बढ़े।

इसे देखकर कौरव ईर्ष्यालु हो गए।
दुर्योधन, कर्ण और शकुनि ने मिलकर षडयंत्र रचा।
या तो पांडवों को अधीन कर दिया जाए, नियंत्रण में रखा जाए, या उन्हें हमेशा के लिए निष्कासित कर दिया जाए।
इसके लिए उन्होंने कई षडयंत्र रचे।

दुर्योधन ने भीम को विष देकर सोते समय बांधकर गंगा में डुबो दिया।

इन सबके बावजूद पांडवों में उनके प्रति कोई शत्रुता नहीं जागी।
उन्होंने कभी बदला लेने की कोशिश नहीं की।

विदुर पांडवों का समर्थन कर रहे थे।
विदुर उनके चाचा हैं।
वे उन्हें कौरवों की साजिशों के बारे में सावधान करते थे।

पांडवों के लिए वारणावत में लाह से एक महल बनाया गया और उन्हें धृतराष्ट्र ने वहां रहने के लिए कहा।

लाह अत्यधिक ज्वलनशील होता है।
पलाह के महल का रखवाला था पुरोचन।
उसे पांडवों और उनकी माँ को लाह महल के अंदर जलाकर मारने का आदेश दिया गया था दुर्योधन द्वारा।
यह बात विदुर ने पांडवों को बताया।

पांडव वहां एक साल तक रहे और इस बीच उन्होंने बाहर निकलने के लिए एक सुरंग खोदा।
फिर उन्होंने लाह महल को आग लगाकर , पुरोचन को मारकर, वहां से निकला।
लसभी ने सोचा कि वे पांडव आग में मर गए।

जंगल में भीम ने हिडिम्ब नामक एक राक्षस का वध किया और उसकी बहन हिडिम्बा से विवाह किया।
उन दोनों का पुत्र है घटोत्कच।

फिर वे एकचक्र नामक जगह पर गए और वैदिक ब्रह्मचारियों के वेश में वहां रहने लगे।

एकचक्र के पास बक नामक एक आदमखोर राक्षस था।
भीम ने उसे मार डाला और एकचक्र के निवासियों को बचाया।

फिर हुआ पांचाली का स्वयंवर।
पांडवों ने पांचाली को अपनी पत्नी के रूप में प्राप्त किया, लेकिन इसके कारण वे पहचाने गये।
पांडव जिन्दा हैं- यह बात दुर्योधन को पता चला।
वे पांचाल में एक वर्ष तक रहे।

फिर पांडव हस्तिनापुर आए।
धृतराष्ट्र और भीष्म ने उनसे कहा, हमने तुम चचेरे भाइयों के बीच किसी भी संघर्ष से बचने का एक तरीका खोज लिया है।

तुम लोग जाकर खांडवप्रस्थ में रहो।
खांडवप्रास्थ बहुत सुंदर जगह है।
तुम लोग वहां प्रगाति कर सकते हो।

पांडवों ने खांडवप्रस्थ में बहुत अच्छा करना शुरू कर दिया।
उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया।
फिर किसी कारणवश अर्जुन १२ वर्ष एक माह तक उनसे दूर रहे।
अर्जुन ने उस समय तीर्थयात्रा की, नागकन्या उलूपी से विवाह किया, चित्रांगदा से विवाह किया, और सुभद्रा से विवाह किया।


अर्जुन भगवान कृष्ण के साथ खांडवप्रस्थ लौट आए और अर्जुन ने अग्नि की उपासना की।
अग्निदेव ने अर्जुन गांडीव नामक धनुष दिया, दो तूणीर जो कभी खाली नहीं होंगे, और एक रथ।
अर्जुन ने एक बार असुर शिल्पी मय को बचाया था।
मय ने खांडवप्रस्थ में पांडवों के लिए एक सुंदर महल बनवाया।

पांडवों की प्रगति देखकर कौरव ईर्ष्यालु और लालची हो गए।
उन्होंने युधिष्ठिर को जुए के खेल में फंसा दिया।
शकुनि ने उन्हें खेल में धोखा दिया, सब कुछ ले लिया, और पांडवों १२ साल तक वनवास में भेज दिया। उसके बाद एक साल अज्ञात वास में भी रहना था।

इसके पूरा होने पर, पांडव लौट आए और अपना राज्य और धन वापस मांगे।
कौरवों ने मना कर दिया।

फिर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ।

पांडवों ने कौरवों का नाश किया और अपने राज्य और संपत्ति को पुनः प्राप्त किया।
पांडवों और कौरवों के बीच जो हुआ उसका सार है यह।

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