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यह मंत्र मेरे लिए चमत्कारिक है ✨ -nitish barkeshiya

वेदधारा समाज के लिए एक महान सेवा है -शिवांग दत्ता

आपके मंत्रों से मुझे बहुत प्रेरणा मिलती है। 🙏 -राजेश प्रसाद

आप लोग वैदिक गुरुकुलों का समर्थन करके हिंदू धर्म के पुनरुद्धार के लिए महान कार्य कर रहे हैं -साहिल वर्मा

वेदधारा का कार्य अत्यंत प्रशंसनीय है 🙏 -आकृति जैन

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वेङ्कटेश सुप्रभातम् के रचयिता कौन है?

श्रीवेङ्कटेश सुप्रभातम् के रचयिता हैं प्रतिवादि भयंकरं अण्णन्।

यंत्र क्या हैं?

यंत्रों को देवता का शरीर माना जाता है, जबकि मंत्र को उनकी आत्मा। प्रत्येक देवता से संबंधित एक यंत्र होता है, और आगम यंत्रों के निर्माण और पूजा के लिए विशेष निर्देश देते हैं। इन्हें सोना, चांदी, तांबा या भूर्ज (भोजपत्र) जैसी विभिन्न सामग्रियों पर बनाया जा सकता है। यंत्र दो प्रकार के होते हैं: पूजा के लिए उपयोग किए जाने वाले (पूजनीय) और शरीर पर धारण किए जाने वाले (धारणीय), जिनके बारे में माना जाता है कि वे इच्छाओं को पूरा करते हैं और सुरक्षा प्रदान करते हैं।

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पुष्कर में ब्रह्माजी किस रूप में प्रतिष्ठित हैं ?

अथ कुञ्जिकास्तोत्रम् । ॐ अस्य श्रीकुञ्जिकास्तोत्रमन्त्रस्य । सदाशिव-ऋषिः । अनुष्टुप् छन्दः । श्रीत्रिगुणात्मिका देवता । ॐ ऐं बीजम् । ॐ ह्रीं शक्तिः । ॐ क्लीं कीलकम् । सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । शिव उवाच । श....

अथ कुञ्जिकास्तोत्रम् ।
ॐ अस्य श्रीकुञ्जिकास्तोत्रमन्त्रस्य । सदाशिव-ऋषिः । अनुष्टुप् छन्दः । श्रीत्रिगुणात्मिका देवता । ॐ ऐं बीजम् । ॐ ह्रीं शक्तिः । ॐ क्लीं कीलकम् । सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।
शिव उवाच ।
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मन्त्रप्रभावेन चण्डीजापः शुभो भवेत् ।
कवचं नाऽर्गलास्तोत्रं कीलकं च रहस्यकम् ।
न सूक्तं नाऽपि वा ध्यानं न न्यासो न च वाऽर्चनम् ।
कुञ्जिकामात्रपाठेन दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अतिगुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
ॐ श्रूं श्रूं श्रूं शं फट् । ऐं ह्रीं क्लीं ज्वल उज्ज्वल प्रज्वल । ह्रीं ह्रीं क्लीं स्रावय स्रावय । शापं नाशय नाशय । श्रीं श्रीं जूं सः स्रावय आदय स्वाहा । ॐ श्लीं ॐ क्लीं गां जूं सः । ज्वलोज्ज्वल मन्त्रं प्रवद । हं सं लं क्षं हुं फट् स्वाहा ।
नमस्ते रुद्ररूपायै नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नमस्ते कैटभनाशिन्यै नमस्ते महिषार्दिनि ।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरसूदिनि ।
नमस्ते जाग्रते देवि जपे सिद्धं कुरुष्व मे ।
ऐङ्कारी सृष्टिरूपिण्यै ह्रीङ्कारी प्रतिपालिका ।
क्लीङ्कारी कालरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ।
चामुण्डा चण्डरूपा च यैङ्कारी वरदायिनी ।
विच्चे त्वभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि ।
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वागीश्वरी तथा ।
क्रां क्रीं क्रूं कुञ्जिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ।
हूं हूं हूङ्काररूपायै जां जीं जूं भालनादिनि ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ।
ॐ अं कं चं टं तं पं यं सां विदुरां विदुरां विमर्दय विमर्दय ह्रीं क्षां क्षीं जीवय जीवय त्रोटय त्रोटय जम्भय जम्भय दीपय दीपय मोचय मोचय हूं फट् जां वौषट् ऐं ह्रीं क्लीं रञ्जय रञ्जय सञ्जय सञ्जय गुञ्जय गुञ्जय बन्धय बन्धय भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे सङ्कुच सञ्चल त्रोटय त्रोटय क्लीं स्वाहा ।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णखां खीं खूं खेचरी तथा ।
म्लां म्लीं म्लूं मूलविस्तीर्णा कुञ्जिकास्तोत्र एत मे ।
अभक्ताय न दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ।
विहीना कुञ्जिकादेव्या यस्तु सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिर्ह्यरण्ये रुदितं यथा ।
इति यामलतन्त्रे ईश्वरपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रम् ।

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