117.4K
17.6K

Comments

Security Code

67929

finger point right
वेदधारा का प्रभाव परिवर्तनकारी रहा है। मेरे जीवन में सकारात्मकता के लिए दिल से धन्यवाद। 🙏🏻 -Anjana Vardhan

हिंदू धर्म के पुनरुद्धार और वैदिक गुरुकुलों के समर्थन के लिए आपका कार्य सराहनीय है - राजेश गोयल

आपको नमस्कार 🙏 -राजेंद्र मोदी

आपके वेदधारा ग्रुप से मुझे अपार ज्ञान प्राप्त होता है, मुझे गर्व कि मैं सनातनी हूं और सनातन धर्म में ईश्वर ने मुझे भेजा है । आपके द्वारा ग्रुप में पोस्ट किए गए मंत्र और वीडियों को में प्रतिदिन देखता हूं । -Dr Manoj Kumar Saini

वेदधारा का कार्य सराहनीय है, धन्यवाद 🙏 -दिव्यांशी शर्मा

Read more comments

Knowledge Bank

घर के लिए कौन सा शिव लिंग सबसे अच्छा है?

घर में पूजा के लिए सबसे अच्छा शिव लिंग नर्मदा नदी से प्राप्त बाण लिंग है। इसकी ऊंचाई यजमान के अंगूठे की लंबाई से अधिक होनी चाहिए। उत्तम धातु से पीठ बनाकर उसके ऊपर लिंग को स्थापित करके पूजा की जाती है।

माथे पर तिलक, भस्म, चंदन का लेप आदि क्यों लगाते हैं?

माथे पर, खासकर दोनों भौहों के बीच की जगह को 'तीसरी आंख' या 'आज्ञा चक्र' का स्थान माना जाता है, जो आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और ज्ञान का प्रतीक है। यहां तिलक लगाने से आध्यात्मिक जागरूकता बढ़ने का विश्वास है। 2. तिलक अक्सर धार्मिक समारोहों के दौरान लगाया जाता है और इसे देवताओं के आशीर्वाद और सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है। 3. तिलक की शैली और प्रकार पहनने वाले के धार्मिक संप्रदाय या पूजा करने वाले देवता का संकेत दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, वैष्णव आमतौर पर U-आकार का तिलक लगाते हैं, जबकि शैव तीन क्षैतिज रेखाओं वाला तिलक लगाते हैं। 4. तिलक पहनना अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत को व्यक्त करने का एक तरीका है, जो अपने विश्वासों और परंपराओं की एक स्पष्ट याद दिलाता है। 5. तिलक धार्मिक शुद्धता का प्रतीक है और अक्सर स्नान और प्रार्थना करने के बाद लगाया जाता है, जो पूजा के लिए तैयार एक शुद्ध मन और शरीर का प्रतीक है। 6. तिलक पहनना भक्ति और श्रद्धा का प्रदर्शन है, जो दैनिक जीवन में दिव्य के प्रति श्रद्धा दिखाता है। 7. जिस स्थान पर तिलक लगाया जाता है, उसे एक महत्वपूर्ण एक्यूप्रेशर बिंदु माना जाता है। इस बिंदु को उत्तेजित करने से शांति और एकाग्रता बढ़ने का विश्वास है। 8. कुछ तिलक चंदन के लेप या अन्य शीतल पदार्थों से बने होते हैं, जो माथे पर एक शांत प्रभाव डाल सकते हैं। 9. तिलक लगाना हिंदू परिवारों में दैनिक अनुष्ठानों और प्रथाओं का हिस्सा है, जो सजगता और आध्यात्मिक अनुशासन के महत्व को मजबूत करता है। 10. त्योहारों और विशेष समारोहों के दौरान, तिलक एक आवश्यक तत्व है, जो उत्सव और शुभ वातावरण को जोड़ता है। संक्षेप में, माथे पर तिलक लगाना एक बहुआयामी प्रथा है, जिसमें गहरा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक महत्व है। यह अपने विश्वास की याद दिलाता है, आध्यात्मिक चेतना को बढ़ाता है, और शुद्धता और भक्ति का प्रतीक है।

Quiz

अंत्येष्टि संस्कार में दिवंगत को कब पितृ का रूप मिलता है ?

ॐ देव्युवाच । एभिः स्तवैश्च मां नित्यं स्तोष्यते यः समाहितः । तस्याहं सकलां बाधां शमयिष्याम्यसंशयम् । मधुकैटभनाशं च महिषासुरघातनम् । कीर्तयिष्यन्ति ये तद्वद्वधं शुम्भनिशुम्भयोः । अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्....

ॐ देव्युवाच ।
एभिः स्तवैश्च मां नित्यं स्तोष्यते यः समाहितः ।
तस्याहं सकलां बाधां शमयिष्याम्यसंशयम् ।
मधुकैटभनाशं च महिषासुरघातनम् ।
कीर्तयिष्यन्ति ये तद्वद्वधं शुम्भनिशुम्भयोः ।
अष्टम्यां च चतुर्दश्यां नवम्यां चैकचेतसः ।
श्रोष्यन्ति चैव ये भक्त्या मम माहात्म्यमुत्तमम् ।
न तेषां दुष्कृतं किञ्चिद्दुष्कृतोत्था न चापदः ।
भविष्यति न दारिद्र्यं न चैवेष्टवियोजनम् ।
शत्रुभ्यो न भयं तस्य दस्युतो वा न राजतः ।
न शस्त्रानलतोयौघात् कदाचित् सम्भविष्यति ।
तस्मान्ममैतन्माहात्म्यं पठितव्यं समाहितैः ।
श्रोतव्यं च सदा भक्त्या परं स्वस्त्ययनं महत् ।
उपसर्गानशेषांस्तु महामारीसमुद्भवान् ।
तथा त्रिविधमुत्पातं माहात्म्यं शमयेन्मम ।
यत्रैतत् पठ्यते सम्यङ्नित्यमायतने मम ।
सदा न तद्विमोक्ष्यामि सान्निध्यं तत्र मे स्थितम् ।
बलिप्रदाने पूजायामग्निकार्ये महोत्सवे ।
सर्वं ममैतन्माहात्म्यमुच्चार्यं श्राव्यमेव च ।
जानताजानता वापि बलिपूजां यथाकृताम् ।
प्रतीक्षिष्याम्यहं प्रीत्या वह्निहोमं तथाकृतम् ।
शरत्काले महापूजा क्रियते या च वार्षिकी ।
तस्यां ममैतन्माहात्म्यं श्रुत्वा भक्तिसमन्वितः ।

सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसमन्वितः ।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः ।
श्रुत्वा ममैतन्माहात्म्यं तथा चोत्पत्तयः शुभाः ।
पराक्रमं च युद्धेषु जायते निर्भयः पुमान् ।
रिपवः सङ्क्षयं यान्ति कल्याणं चोपपद्यते ।
नन्दते च कुलं पुंसां माहात्म्यं मम श‍ृण्वताम् ।
शान्तिकर्मणि सर्वत्र तथा दुःस्वप्नदर्शने ।
ग्रहपीडासु चोग्रासु माहात्म्यं श‍ृणुयान्मम ।
उपसर्गाः शमं यान्ति ग्रहपीडाश्च दारुणाः ।
दुःस्वप्नं च नृभिर्दृष्टं सुस्वप्नमुपजायते ।
बालग्रहाभिभूतानां बालानां शान्तिकारकम् ।
सङ्घातभेदे च नृणां मैत्रीकरणमुत्तमम् ।
दुर्वृत्तानामशेषाणां बलहानिकरं परम् ।
रक्षोभूतपिशाचानां पठनादेव नाशनम् ।
सर्वं ममैतन्माहात्म्यं मम सन्निधिकारकम् ।
पशुपुष्पार्घ्यधूपैश्च गन्धदीपैस्तथोत्तमैः ।
विप्राणां भोजनैर्होमैः प्रोक्षणीयैरहर्निशम् ।
अन्यैश्च विविधैर्भोगैः प्रदानैर्वत्सरेण या ।
प्रीतिर्मे क्रियते सास्मिन् सकृदुच्चरिते श्रुते ।
श्रुतं हरति पापानि तथारोग्यं प्रयच्छति ।
रक्षां करोति भूतेभ्यो जन्मनां कीर्तनं मम ।
युद्धेषु चरितं यन्मे दुष्टदैत्यनिबर्हणम् ।

तस्मिञ्छ्रुते वैरिकृतं भयं पुंसां न जायते ।
युष्माभिः स्तुतयो याश्च याश्च ब्रह्मर्षिभिः कृताः ।
ब्रह्मणा च कृतास्तास्तु प्रयच्छन्तु शुभां मतिम् ।
अरण्ये प्रान्तरे वापि दावाग्निपरिवारितः ।
दस्युभिर्वा वृतः शून्ये गृहीतो वापि शत्रुभिः ।
सिंहव्याघ्रानुयातो वा वने वा वनहस्तिभिः ।
राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा ।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे ।
पतत्सु चापि शस्त्रेषु सङ्ग्रामे भृशदारुणे ।
सर्वाबाधासु घोरासु वेदनाभ्यर्दितोऽपि वा ।
स्मरन् ममैतच्चरितं नरो मुच्येत सङ्कटात् ।
मम प्रभावात्सिंहाद्या दस्यवो वैरिणस्तथा ।
दूरादेव पलायन्ते स्मरतश्चरितं मम ।
ऋषिरुवाच ।
इत्युक्त्वा सा भगवती चण्डिका चण्डविक्रमा ।
पश्यतां सर्वदेवानां तत्रैवान्तरधीयत ।
तेऽपि देवा निरातङ्काः स्वाधिकारान्यथा पुरा ।
यज्ञभागभुजः सर्वे चक्रुर्विनिहतारयः ।
दैत्याश्च देव्या निहते शुम्भे देवरिपौ युधि ।
जगद्विध्वंसके तस्मिन् महोग्रेऽतुलविक्रमे ।
निशुम्भे च महावीर्ये शेषाः पातालमाययुः ।
एवं भगवती देवी सा नित्यापि पुनः पुनः ।
सम्भूय कुरुते भूप जगतः परिपालनम् ।
तयैतन्मोह्यते विश्वं सैव विश्वं प्रसूयते ।
सा याचिता च विज्ञानं तुष्टा ऋद्धिं प्रयच्छति ।
व्याप्तं तयैतत्सकलं ब्रह्माण्डं मनुजेश्वर ।
महादेव्या महाकाली महामारीस्वरूपया ।
सैव काले महामारी सैव सृष्टिर्भवत्यजा ।
स्थितिं करोति भूतानां सैव काले सनातनी ।
भवकाले नृणां सैव लक्ष्मीर्वृद्धिप्रदा गृहे ।
सैवाऽभावे तथालक्ष्मीर्विनाशायोपजायते ।
स्तुता सम्पूजिता पुष्पैर्गन्धधूपादिभिस्तथा ।
ददाति वित्तं पुत्रांश्च मतिं धर्मे तथा शुभाम् ।
मार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देव्याश्चरितमाहात्म्ये
भगवतीवाक्यं द्वादशः ।

Other languages: EnglishTamilMalayalamTeluguKannada

Recommended for you

दैव कृपा से ही सब कुछ मिलता है

दैव कृपा से ही सब कुछ मिलता है

Click here to know more..

समृद्धि और लक्ष्य प्राप्ति के लिए गणेश मंत्र

समृद्धि और लक्ष्य प्राप्ति के लिए गणेश मंत्र

ॐ लक्षलाभयुताय सिद्धिबुद्धिसहिताय गणपतये नमः ।....

Click here to know more..

शंकराचार्य करावलम्ब स्तोत्र

शंकराचार्य करावलम्ब स्तोत्र

ओमित्यशेषविबुधाः शिरसा यदाज्ञां सम्बिभ्रते सुममयीमिव �....

Click here to know more..