यद्धात्रा निजभालपट्टलिखितं स्तोकं महद्वा धनं
तत् प्राप्नोति मरुस्थलेऽपि नितरां मेरौ ततो नाऽधिकम् |
तद्धीरो भव वित्तवत्सु कृपणां वृत्तिं वृथा मा कृथाः
कूपे पश्य पयोनिधावपि घटो गृह्णाति तुल्यं जलम् ||
ब्रह्मा ने हमारे माथे पर हमारे लिए जितना धन लिखा है, हमे उतना ही धन मिलेगा | किसी के भी चाहने पर न ये कम होगा और न ही बढेगा | चाहे आप रेगिस्तान में रहो या सुमेरु पर्वत पर, वह धन कम-ज्यादा नहीं होगा |
इस लिए धैर्य रखो और धनवान व्यक्तियों को देखते ही लोभित होकर उनके सामने दीन मत बनो | चाहे कुंआ हो या समंदर, एक घडे में जितनी पानी निकालने की क्षमता है, वह उतना ही निकाल पाएगा |
ॐ शनि कांकुली पाणीयायाम् । पालनहरि आरिक्षणी । नेम्बेंदिविरान्दिन यदू यदू । जाणनिरान्द्रि । पाषाण युगे युगे धर्मयन्त्री । फाअष्टष्यति नजर याणी धुम्रयाणी । धनम् प्रजायायाम् घनिष्टयति । पादानिदर पादानिदर नमस्तेते नमस्तेते । आदरणीयम् फलायामी फलायामी । इति सिद्धम् - प्रति दिन ७२ बार बोलें ।
हां। हनुमानजी अभी भी जीवित हैं। अधिकांश समय, वे गंधमादन पर्वत के शीर्ष पर तपस्या करते रहते हैं। श्रीराम जी का अवतार २४ वें त्रेतायुग में था। लगभग १.७५ करोड़ वर्ष बाद वर्तमान (२८वें) चतुर्युग के द्वापर युग में भीम उनसे तब मिले जब वे सौगंधिक के फूल लेने जा रहे थे। हनुमान जी आठ चिरंजीवियों में से एक हैं। वे इस कल्प के अंत तक रहेंगे जो २,३५,९१,४६,८७७ वर्ष दूर है।
श्रीरामजी को देवी माँ का दर्शन प्राप्त होता है
अथर्ववेद का अनु सूर्यमुदायताम सूक्त
अनु सूर्यमुदयतां हृद्द्योतो हरिमा च ते । गो रोहितस्य वर�....
Click here to know more..सुब्रह्मण्य ध्यान स्तोत्र
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